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________________ (३२७) मेघमहोदय गलन्ति नो चैत्रशुक्ले तदा वर्षा यथास्थिताः ॥१५॥ आयुक्तम्-चैत्रस्यादौ दिवसदशकं कल्पयित्वा क्रमेण , स्वात्यन्ता प्रभृतिमुनिभिष्टिहेतोर्विलोक्यम् । यावत्संख्ये भवति दिवसे दुर्दिनं वाऽथ दृष्टि स्तावत्संख्यं भवति नियतं वार्षिकं दग्धमृक्षम् ॥१६॥ करकाधूनिकापातो रजोवृष्टिः सधूनिका। त्रिभिरेतैमहोत्पातैः सद्यो गो विनश्यति ॥१७॥ कार्तिकाद् राधपर्यन्तं गर्भाः स्युः सप्तमासजाः । उत्पतेः सार्द्धषण्मासै-विना पातं प्रकृतिदाः ॥१८॥ यदाहुः-गर्भिते कार्तिके मासे मासाश्चत्वार ईरिताः कृष्टयाकुलाः मुभिक्षं च सस्यसम्पतिरुत्तमा ॥१६॥ कृष्णपीतहरिच्छ्वेत-वर्णा मेघास्तदा स्मृताः । सिन्दरताम्रवर्णास्तु क्वचिदृष्टिविधायिनः ॥२०॥ अत एव लोकेऽपि-कातीमासह धुरिकरवि, वैसाखह पज्जत। यदि चैत्र शुक्लपक्षमें गले (बरसे) नहीं और यथास्थित रहे तो वर्षा होती है ॥ १५॥ चैत्र शुक्लपक्ष के दश दिन आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र तक क्रम में कृष्टिके लिये अवलोकन करना चाहिये, इनमें यदि जिस दिन दुर्दिन या वर्षा हो उतनी संख्यावाला वर्षाका नक्षत्र दग्ध होता है ॥ १६ ॥ ओला तथा धूनिका का गिरना और धूमिका के साथ रजः की वर्षा होना ये तीन महा उत्पात हैं, इनसे गर्भका शीघ्रही नाश होता है ॥ १७॥ कात्तिकसे वैशाख तक ये साप्त मास गर्भ रहते हैं । वे उत्पत्ति से सादे छभास बाद प्रसूति दायक होते हैं ॥१८॥ कार्तिक मासमें उत्पन्न हुए गर्भ चार मास वर्षा से परिपूर्ण होता है और सुभिक्ष तथा धान्य की प्राप्ति उत्तम करता है ॥ १६॥ धाम, पीला, हरा और श्वेत ये वर्णवाले मेव वर्षादायक हैं और सिंदूर तथा ताम्रवर्णवाले मेव क्वचित ही वर्षादायक हैं ॥२०॥ लोक में भी कात्तिक "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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