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________________ वर्षराजाविकफलम विद्युभ्रादिकं श्रेष्ठ माषादेऽपि सुभिक्षकृत् ॥ ३२० ॥ वराहः प्राह (३१३) यद्रोहिणी योगफलं तदेव, स्वातावषाढासहिते च चन्द्रे | आषाढ शुक्ले निखिलं विचिन्त्यं, योऽस्मिन् विशेषस्तमहं प्रवक्ष्ये स्वातौ निशांशे प्रथमेऽभिवृष्टे, सस्यानि सर्वाण्युपयान्ति वृद्धिम् भागे द्वितीये तिलमुद्गमाषा, ग्रैष्मं तृतीयेऽस्ति न शारदानि ॥ पृष्टेऽहमागे प्रथमे सुदृष्टि-स्तद्वितीये तु सकीटसर्पाः । दृष्टिस्तु मध्याsपर भागवृष्टे - निंछिद्रवृष्टिनिशं प्रवृष्टे | २३ | समुत्तरेण तारा चित्रायाः कीर्त्यते पांवत्सः । तस्यासने चन्द्रे स्वातेर्योगः शुभो भवति ॥ ३२४ ॥ इति । वैशाख में स्वातियोग में बिजली और बाइल आदि हो तो आपादमें अधिक सुभिक्षकारक है ॥ ३२० ॥ वराहमिहिराचार्य कहते हैं कि- जैसे चंद्रमा के साथ रोहिणीयोग का फल है उसी तरह आपाट नक्षत्र (पूर्वा-उत्तराषाढा) और स्वातिनक्षत्र के साथ चंद्रमा योगका फल भी वैसा ही है | आषाढके समस्त शुक्लपक्ष में इसका अच्छी तरह विचार करें, इसमें जो विशेष है उसको कहता हूं ॥ ३२९ ॥ स्वाति नक्षत्र के दिन रात्रि के प्रथम अंशमें वर्षा हो तो सब प्रकारके धान्य की वृद्धि हो । दूसरे अंश (भाग) में वर्षा हो तो तिल, मूंग और उड़द की वृद्धि हो । तीसरे अंश में वर्षा हो तो ग्रीष्मऋतु के धान्य ' यव-गेहूँ आदि' हों, परंतु शरदऋतु के धान्य जुमार, बांजरी आदि उत्पन्न नहीं ॥ ३२२ ॥ दिनके प्रथम भाग में वर्षा हो तो आगे अच्छी वर्षा हो । दूसरे भाग में वर्षा हो तो आगे वर्षा अच्छी हो परंतु कीड़े और सर्प आदि अधिक हों। तीसरे भाग में वर्षा हो तो आगे मध्यम वर्षा हो और दिनरात वर्षा हो तो आगे उपद्रव रहित अच्छी वर्षा हो ॥ ३२३॥ चित्रा नक्षत्र समसूत्र ठीक उत्तर में तारा दीख पडता है उसको 'अपवित्स' कहते -उसके समीप चंद्रमा के साथ स्वातिका योग हो तो शुभ होता हैं ॥ ३२४॥ ૪૦ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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