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________________ (३१२) मेधमहोदये माहे बहुली * सप्तमी फग्गुण पंचमी य चित्त बीयाए । वहसाह पढम पडिवय हवइ मेहाओ सुभिक्खं ॥३१५॥ नवमी दसमी इगारसी माहे किसणम्मि जइहवइ विज्जू । भहवय सुद्ध नवमी दसमी एगारसी य पउरजलं ॥३१॥ महासुभिक्षमादेश्यं राजानो निरुपद्रवाः । सप्तमी निर्मला नेष्ठा श्रेष्ठा वृष्टिबलान्ननु ॥३१७॥ केवलकीर्तिदिगम्बरोऽप्याहमाघस्य शुक्लसप्तम्यां यदाभ्रं जायतेऽभितः । तदा वृष्टिघना लोके भविष्यति न संशयः ॥३१८॥ स्वातियोग:---- मावे च कृष्णसप्तम्यां स्वातियोगेऽभ्रगर्जितम् । हिमपाते चण्डवाते सर्वधान्यैः प्रजासुखम् ॥३१६॥ तथैव फाल्गुने चैत्रे वैशाखे स्वाति योगजम् । सप्तमी, फाल्गुन मासकी पंचमी, चैत्र मास की दूज और वैशाख मास की प्रथम प्रतिपदा इनमें वर्षा हो तो मुभिक्षकारक है || ३१५ || माघ कृष्ण नवमी, दशमी और एकादशीको बिजली चमके तो भाद्रमासकी शुक्लपक्षकी नवमी, दशमी और एकादशीको बहुत वर्षा हो ॥ ३१६ ।। तथा अत्यन्त सुकाल और राजाओं उपद्रव रहित हों | सप्तमी निर्मल हो तो अच्छा नहीं, बरसे तो श्रेठ है ॥३१७॥ केवलकीर्तिदिगम्बर कहते हैं कि- माघ शुक्ल सप्तमीको यदि आकाशमें चारों तरफ बादल हो तो पृथ्वी पर बहुत वर्षा हो इसमें संदेह नहीं ॥३१८ माघ कृष्ण सप्तमीको स्वाति योगमें बादल हो, गर्जना हो, हिम गिरे, प्रचंड पवन चले तो सब प्रकारके धान्य प्राप्त हों और प्रजा सुखी हो ।। ३१६ ॥ इसी प्रकार फाल्गुन, चैत्र और * टी-अत्र वृष्टिरक्ता सप्तम्यां माघमासे इत्यादिनाघराहेणोक्तत्वात् तदेव स्वातिसम्भवापि । "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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