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________________ वर्षराजादिकपलम् (२५९) एवं शाकसमायनादिसमयं ज्योतिर्विदां वामयाद्, नित्याभ्यासवशाद विमृश्य सुदं प्राज्यप्रभाभासुरः । श्रीमन्मेघमहोदयं सविजयं जानाति नातिश्रमाद , भूपानामनुरञ्जनात् स लभते सिद्धिं सदा सम्पदाम् ॥१४५।। इति श्रीमेघमहोदयसाधने वर्षयोधे तपागच्छीय-महोपाध्यायश्रीमेघविजयगणिविरचितेऽयनमासपक्षनिरू पणनामा षष्ठोऽधिकारः। अथ वर्षराजादिकथने सप्तमोऽधिकारः। अथ अगस्तिद्वारम्-- अथ यदि समुदेति चेतिमानं दधानः, सकलकलशजन्मा सिन्धुपानप्रधानः । भगवति भगदैवे भे स्थिते पद्मिनीशे, निशि दिशि दिशि लक्ष्म्यै स्यादयं सप्तमेऽहि ॥१॥ इस प्रकार शकसंवत्सर अयन अदि समयको ज्योतिर्विदों के शास्त्रों से और हमेशाके अभ्यासक्शसे प्रभावशाली ज्योतिषी अच्छी तरह विचार कर के सफलीभूत ऐसा मेघमहोदय को थोड़ा परिश्रम से जानता है, और वह राजाओंको खुश करके हमेशा सिद्धि और संपदाको प्राप्त करता है ॥ १४५ ॥ सौराष्ट्राष्ट्रान्तर्गत-पादलिप्तपूरनिवासिना पण्डितभगवानदासाख्यजैनेन विरचितया मेघम्होदये बालावबोधिन्याऽऽर्यभाषया टीकितोऽयन मासपक्षनिरूपणनामा षष्ठोऽधिकारः । जब सूर्य पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र पर आवे तब उससे सातवें दिन रात्रि में प्रकाशको धारण करनेवाला और समुद्रको पीजाने में प्रधान ऐसा अगस्ति अषिका उदय हो तो चारोही दिशामें लक्ष्मीके लिये शुभ होता है ॥१॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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