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________________ (२५८) मेघमहोदये मूलादिनवनक्षत्र-नैर्मल्ये वत्सरः शुभः ॥१३८॥ 'मेषसंक्रान्तिकालात्तु' इत्यादि । लोके पुनर्विशेषः चैत्र अजुमाली चउथथी, मेस थका नव दीह । जल आभुविज्जु लवे, तो कुडंबी मम बीह ॥१३९॥ वैशाखमासे प्रतिपदिनाच्चे-न्मेघोदयः सप्तदिनानि यावत् । अभ्रेषु ग| घनविशुदादि, तदा सुभिक्षंमुनयो वदन्ति।१४० माघमासस्य सप्तम्यां पञ्चम्यां फाल्गुनस्य च । चैत्रस्यापि तृतीयायां वैशाखे प्रथमेऽहनि ॥१४॥ मेघस्य गर्जितं श्रुत्वा जलदेस्य तु दर्शने। . चतुरो वार्षिकान् मासान् जलवृष्टिं तदा वदेत्॥१४२॥ हीरसूरयस्त्वाहुःकत्तियमासह बारसइ, मगसिर दसमी भाल । पोसहमासि पंचमी, सत्तमी माह निहाल ॥१४३॥ जइ वरसे विज्जु लवे, अह उन्नमण करेय । मासा च्यारे पावसह, धाराधरवरिसेय ॥१४४॥ अच्छा होता है ॥ १३८ ॥ चैत्र मासकी शुक्ल चतुर्थीके बाद मेष संक्रान्ति से नव दिन वर्षा हो या बिजली चमके तो हे कृषिकार ! तुम डर नहीं ॥ १३॥ ॥ वैशाख मासमें प्रतिपदासे सात दिन तक मेघ का उदय हो, गर्जना हो, वर्षा और बिजली आदि हो तो सुभिक्ष होता है ऐसा मनियों ने कहा है ॥ १४० |मावमासकी सप्तमी, फाल्गुनकी पंचमी, चैत्र की तृतीया और वैशाखका प्रथम दिन ॥१४१॥ इनमें मेघकी गर्जना हो और उनका दर्शन भी हो तो चौमासेके चार मासमें वर्षा अच्छी होती है॥१४२॥ श्रीही विजयसूरिने भी कहा है कि- कार्तिक मासकी बारस, मार्गशीर्षकी दशमी, पौष मासकी पंचमी और माघ मासकी सप्तमी ॥१४३॥ इन दिनों में यदि वर्षा हो, बिजली चमके तो चौमासेमें धाराबंध वर्षा हो ॥१४४॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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