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________________ शारचारफलम् पाताले नागलोके दिशि विदिशि गता भीतभीता नरेन्द्राः। सर्वे लोका विलीनाः प्रथमगत्तधना याचमाना ब्रजन्तिः ।। वैरासस्वाज्जनानां धनमुखहरणं सर्वदेशे महर्षे, दुःखं वैराग्ययोगः सकलजनमनस्यानाशः पशूनाम् । धान्यस्यैवार्द्धनाशो रसकसरहितं सर्वशून्यं जनाना. . मित्येते सर्वदेशाः परिजनधिकलाःसूर्यपुत्रे वृषस्थे॥४॥ प्राज्यं कार्पासलोहा लवणतिलगुडाः सर्वदेशे महर्घा, .. मनिष्ठा हेमसारे वृषभहयगजं सर्वधान्यं समर्घम् । : सप्त द्वीपे समुद्रे सुखिजनसहिते सर्वसौख्यं नरेन्द्राः, सर्वतों यान्ति मेघाः सकलमुनिमतं मैथुने सूर्यपुत्रे॥५॥ रोगा नित्यं ग्रसन्ति प्रयुरपरिभवो वित्तनाशस्तथैव, कार्ये हानिर्विरुद्धः सकलभयजनो देशचिन्ताविषादः । आरावोऽम्चूपपातष्टलटलपृथिवी सर्वलोकाद् विनाशः, नागलोक में दिशा और विदिशामें राजाओं भयभीत हों और सब लोक दुःखी हो, तथा पहले इकट्ठा किया हुआ धनसे रहित होकर जहां तहां याचना करते फिरें ॥ ३ ॥ वृषराशिमें शनैश्चर हो तो मनुष्य परस्पर वैर से दुःखी, धन और सुखका विनाश, सब देशमें अन्नकी तेजी, सब मनुष्य के मनमें दुःख वैराग्य, पशुका नाश, धान्यका अर्द्ध विनाश, रस. कस से हीन और सब शून्यता हो, इस तरह समस्त देशके लोग व्याकुल रहें । ४. ॥ मिथुनराशिमें शनैश्चर हो तो घी कपास लोहा नमक तिल गुड ये वस्तु सब देशमें महँगे हों, मँजीठ सुवर्ण वृषभ घोडा हाथी और सब धान्य सस्ते हों, सातों ही द्वीप समुद्र तकके रहनेवाले लोग सुखी, राजाओं सन्न सुखी, सर्व ऋतुमें मेघ बरसे यह समस्त फल मुनियोंने कहा हैं ॥५॥ कर्कराशिमें शनैश्चर हो तो रोग अधिक, बहुत तिरस्कार, धनका अधिक नाश, कार्यमें हानि, मनुष्यों में विरोध और भय, देशमें चिन्ता और विधाद, "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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