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________________ ( १९४) अथ पञ्चमः संवत्सरशरीरम् -- अथ शनिचारविचार: मेघमहोदये रोहिण्यानलभं च वत्सरतनुर्नाभिस्त्वषाढाद्वयं, साहृत् पितृदेवतं च कुसुमं शुद्धैः शुभं तैः फलम् । देहे क्रूर निपीडितेऽन्यनिलजं नाभ्यां भयं क्षुत्कृतं, पुष्पे मूलफलक्षयोऽथ हृदये सस्यस्य नाशो ध्रुवम् ॥ १ ॥ अथ शनिरपि वर्षस्याधिपः प्रागुपात, स्तदिहचरितमस्याभ्यस्य वाच्यो विमर्शः । जलद विषय एवं धीमता येन वर्षे, शुभमशुभमथाग्रे भावि बुद्धयाविबोधः ॥२॥ - शनैश्चरवत्सरनिरूपणाधिकारः । मेषस्थे भानुपुत्रे त्रिभुवनविदिते याति धान्यं विनाशं तृले तैल्लङ्गबङ्गे हयखुरदलितं विग्रहस्तोत्र एव । रोहिणी और कृत्तिका नक्षत्र वर्षका शरीर है, पूर्वाषाढा और उत्तराबाद वर्षकी नाभी है, आश्लेषा नक्षत्र वर्षका हृदय और मघा नक्षत्र वर्षका " कुसुम है । ये सब यदि शुद्ध हो तो शुभ फलदायक हैं। संवत्सर (- बृहस्पतिवर्ष ) का शरीरनक्षत्र यदि पापग्रह से पीडित हो तो अभि और वायुका भय हो । नाभिनक्षत्र पीडित हो तो क्षुवाका भय हो । पुष्प (कुमुम) नक्षत्र पीडित हो तो मूल तथा फलका विनाश हो और हृदयनक्षत्र करग्रहसे पीडित हो तो निश्चयसे धान्यका विनाश हो ॥१॥ शनैश्वरवर्षका अधिपतिको प्रथम ग्रहण करना, पीछे उसका चरित्रका अभ्यास और विचार करके बुद्धिमानसे मेघका विषय कहना चाहिये और भावि शुभाशुभ वर्षको बुद्धिसे विचारना चाहिये ॥ २ ॥ मेष राशिमें शनैश्चर हो तो धान्यका विनाश, तूल तैलंग और बंगदेश में घोड़े के खुर से पृथ्वी चूर्ण हो ऐसा घोर विग्रह हो, पाताल में " Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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