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________________ - मेघमहीदये अय गुरुकृत्संवत्सरनामक नकथनं रानवितोदे . अयातः सम्प्रवक्ष्यामि गुरुचारमनुत्तमम् । . अनेन गुरुचारेण प्रभवाद्यब्दसम्भवः ॥९॥ स्यादुर्जादिमासेबु बलिभादिछयं छयम् । उपान्त्यपञ्चमान्त्येषु नक्षत्राणां त्रयं त्रयम् ॥१०॥ यस्मिन्नभ्युदितो जीव स्तन्नक्षत्रात्यवत्सरः। . . कचिद् गुरोरस्तभेऽपि सूर्यसिद्धान्तसंमते ॥११॥ प्रवासान्ते गृहक्षण सहितोऽभ्युदयेद् गुरुः। . तस्मात् कालावृक्षों गुरोरब्दः प्रवर्तते ॥१२॥ श्रय गुरुवर्षविचार:स्यात् पीडा कार्तिके वर्षे वहि गावोपजीविनाम् । शस्त्राग्निक्षुभयं वृद्धिः पुष्पकौसुम्भजीविनाम्॥१३॥ सौम्यवर्षे त्यल्पवृष्टिः सस्थहानिस्नेकधा । . और सूर्यादि हैं उनमेंम बृहस्पतिका चालनसे बारह संवत्सर होते हैं ॥८॥ अब यहांसे वृहस्पतिका उत्तम चार (चलन)को कहता हूँ क्योंकि इस गुरुचारसे प्रभव आदि संवत्सर होते हैं ||६i) गुरुके कात्तिमादि महीनों में कृत्तिका आदि दो २ और पांचवां तथा अंत्यके दो ये तीन महीनों में तीन २ नक्षत्र हैं ॥१०} जिस नक्षत्र पर बृहस्पतिका उदय हो उतको नक्षत्रसंवस्सर कहते है। कहीं सूर्यसिद्धान्तके मतसे बृहस्पति जिस नक्षत्र पर अस्त हो उसको नक्षत्रसंवत्सर कहते है ।। १११ प्रवासके अन्त्यमें जिस राशि के “साथ बृहस्पति का उज्य हो उस कालसे बृहस्पति का वर्ष होता है ।।१२।। ... बृहस्पतिक कार्तिक वर्षमें अग्नि और गौएं से आजीविका करनेवाले को पीडा, शत्र और अग्नि आदिका भय तथा कौसुंभ (केनुडा) के फूलों के आजीवियोंकी वृद्धि हो ॥ १३ ॥ मार्गशीर्षवर्ष में थोड़ी वर्षा, अनेक प्रकारसे खेतीकी हानि, राजा लोग एक दूसरेको मारनेकी इच्छासे युद्ध में "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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