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________________ __ गुरुवारफलम् श्रीमारुदेवविहित प्रथमं पृथिव्याम् ॥२॥ तत्पारणादायककारणाप्ते-रभावतः साधिकवत्सरान्ते । राधे तृतीयादिवसे यलक्षे, बभूव भूवल्लभवन्दनीया ॥ ३॥ तबत्सरस्यापि शुभाशुभाद्यं, फलंच तस्मिन् दिवसे विचार्यम् दानं च कार्य पुरुषैः सभाय:, सत्कार्य साधौ तदुपासके वा ।४। संवत्सराख्या विपविंशिकार्थ-ग्रहप्रचाराद्यधिगम्य सम्यक् । यदीक्ष्यतेऽसौ सफला तदोक्तिर्भवेद्विसंवादिकथाऽन्यथाऽस्याः प्राचां तु वाचां विभवानुदीक्ष्य, चलाचलत्वं च बलाबलत्वम्। सर्वग्रहाणां बहुसंग्रहेण, विचार्य चार्य प्रवदेत् फलानि ॥६॥ व्यक्तोऽतिभक्तः स्वगुरौ च देवे, सक्तः स्वधर्मे हृदये दयालुः। यःशास्त्ररीत्या फलमन्दजन्यं, तेस मेघाद्विजयश्रियायः॥ वर्षाधिनाथा गुरुशोरिकेतुः स्वर्भाणवस्तेषु गुरुप्रचारात् । संवत्सरा द्वादश सम्भवन्ति,प्राच्याथ तेषामभिधाविधानः।८। प्रारंभ हुआ, जगत्में यह प्रथमवार ही श्री ऋषभदेवन किया ॥ २ ॥ उस व्रतका पारणाके लाभकी प्राप्तिका अभावसे एक वर्षसे कुछ अधिक वैशाख शुक्ल तीजको हुआ, इसलिये यह तीज जगत्को प्रिय और वंदनीय है ॥ ३ ॥ इस दिन वर्षके शुभाशुभ फलका विचार करना चाहिये और स्त्री तथा पुरुष साधुओंको या उनके उपासकोंको सत्कार पूर्वक दान दें। ४ ॥ यदि संवत्सरकी विंशतिकाका अर्थ ग्रहप्रचार आदिका अच्छी तरह विवार कर कहा जाय तो उसका वचन सफल होता है, अन्यथा विसंवाद (भसत्य) होता है ॥ ५ ॥ प्राचीन वचनोंका प्रभावको स्वीकार कर और सब प्रहोंका चलाचल बलाबलका अच्छी तरह विचार कर फल कहना चाहिये ॥ ६ ॥ जो अपने गुरु और देव पर बहुत भक्तिवाला, अपने धर्ममें श्रद्धावान् और हृदयमें दयावान् हो वह शास्त्ररीतिसे वर्षफल कहे तो मेघसे विजय लक्ष्मी को प्राप्त करता है ॥७॥ वर्षका स्वामी गुरु, शनि, केतु, "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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