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________________ (१५०) मैचमहोदये ण्डवृष्टिः, चतुष्पदहानिः फदिया ५५ नायकल शिका एका, आश्विने रोग: परमन्नसमना सर्वधातुसमता मध्यमसमयः राजविरोधः पश्चिमायां सुभिक्षमन्नं समर्थ सिन्धुदेशात् स्थलदेशाद् वा अन्नागमः पूर्वस्यां विड्वरमन्नसमता ॥ ६० ॥ इत्यत्रमा विंशतिका पूर्णा || इति संक्षेपतः षष्टिसंवत्सरफलानि ॥ अथ गुरुचारः । इयं वाच्या प्राच्यादधिगमगलाद् वत्सरफला, तृतीयायां राधे जिनवरगवि शुक्लसमये । यदा स्यादास्यादेवि भवति काचिद् विघटना, तदा ज्ञेयं ज्ञेयं खल लिखित वाचालचरितम् ॥ १ ॥ आयप्रभो भगवतस्त्रिजगत्समीक्षा, " दीक्षा बभूव मधुमाससिताष्टमाहे । जानं तपस्तदनुवार्षिक मार्षिकेन्द्र " वर्षा, अनाज सस्ता भादो खंडवर्षा, पशुओं की हानि, ५५. फदिया का कलशी धान्य, अश्विन में रोग, परंतु अनाज सस्ता, सब धातु समान, मध्यम समय, राजाओं ने विरोव, पश्चिममें सुकाल, अन्नभाव सस्ता, सिंधुदेश अथवा स्थलदेशसे अन्नका आगमन, पूर्वमें उपद्रव और अन्नभाव सम हो ॥ ६० ॥ इत्यधमाविंशतिका पूर्गा | इति संक्षेपतः षष्टिसंवत्सर फलानि । वैशाख शुक तृतीया के दिन यह संवत्सर संबंधी फलादेश प्राचीन शास्त्र के वलसे कहना चाहिये; यदि इस सत्यरूप जिनवरों के वचनों में कोई विना मालुम पड़े तो समझना चाहिये कि यह खल पुरुषों से लिखा हुआ वाचाल चरित्र है ॥ १ ॥ चैत्र शुक्ल अष्टमीके दिन आदिनाथ भगवाकी तीन जगत् के स्वरूपको देखनेवाली दीक्षा हुई, तभीसे वार्षिक तप " Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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