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________________ संवत्सराधिकार (१४१) न्ये द्विगुणो लाभः, गोधूमानां कलशिका एका फदिया ५० प्रमाणैलभ्यते, सर्वधान्यसमता, रसमहर्घता, भाद्रे खण्डधृष्टिरन्नदुर्भिक्षं, आश्विने राजविरोधो लोकपीडा मार्गविषमता अन्नसंग्रहः, धान्ये द्विगुणो लाभः, सर्वरसधातुसमर्घताः कार्त्तिकादिमासा४ तेषु समता परं राजविड्वरं रोगचालकः, देशा उद्ध्वंसाः, देशान्तरे लोकपीडा, फाल्गुने उदण्डवायुः, पश्चिमायां सुमिक्षं, सिन्धुदेशे राजविरोधः, अ. नसमता ॥४३॥ साधारणे रविः स्वामी, चैत्रे धान्यमन्दा, वैशाखे ज्येष्ठे च उत्पातो, भूमिकम्पो रोगवृद्धी राजविरोधी धान्यमहर्षातादिः, आषाढे वायुसद्दण्डो रौरवं क्वचिदल्पमेघः, श्रावणे महती वर्षा, अन्नसमता, भाद्रपदेऽल्पमेघः, आश्विनेऽल्पधान्यनिष्पत्तिः, कार्त्तिकादिमासद्धयं मध्यममरिष्टं भू. मिकम्पः, अकस्माद राजविग्रहः, अन्नमहर्षता, फाल्गुने चतु. पदः सरोगभावः, भूम्यामल्पफला वृक्षाःसंगृहीतधान्ये त्रि. गुणो लाभ: सर्वधातुमहर्घता सर्वरससंग्रहः परं राजा दुःका दुर्भिक्ष, आश्विनमें राजविरोध, लोकपीडा, मार्गमें विषमता, धान्यका संग्रह से दूना लाभ, सब रस और धातु सस्ती, कार्तिकादि चार मास सम, पीछे राजविप्लव, रोग चाले, देश विनाश, देशान्तर में लोकपीडा, फाल्गुनमें प्रचण्ड वायु, पश्चिममें सुभिक्ष, सिंधुदेश में राजविरोध और अन्नभाव सम || ४३ ॥ साधारणवर्षका स्वामी रवि, चैत्रमें धान्य मंदा, वैशाख ज्येष्टमें उत्पात, भूमिकम्प, रोगवृद्धि, राजाओंमें विरोध, धान्यकी तेजी, आषाढमें प्रचंड पवन, कभी थोड़ी वर्षा, श्रावणमें बड़ी वर्षा अन्नभाव सम, भाद्रपदमें थोड़ी वर्षा, आश्विन में थोड़ी अन्नप्राप्ति, कार्तिक मार्गशीर्ष में मध्यम दुःख, भूमिकम्प, अकस्मात् राजविग्रह, अन्नभाव तेज, फाल्गुनमें पशुओंको रोग, वृक्षोंमें थोड़े फल, संग्रह किया हुआ धान्यमें ती "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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