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________________ , काशिका एका फदिया १० प्रमाणैः, अभ्यमहिषी पीडा लोकपडा ॥ ४१ ॥ कीलकवत्सरे विष्णुः स्वामी, वर्षा मध्यमा, चैत्रे भान्पं महर्चे, वैशाखे रोग:, मरुदेशे दुर्भिक्षं, पश्चिमायां समता, ज्येष्ठे धान्यसंग्रहः, आषाढे श्रावणेऽल्पमेघः, अन्नं महर्ष, धान्ये द्विगुणो लाभः, भाद्रपदेऽष्टमीतिथेर्मेघः आश्वि ने वर्षा, अन्न मह, राजधानीनगरे उद्ध्वंसं, न रोगा बहुता, गोधूमा महघाः, सर्वधान्यं समर्थ, रसाः समघाः, घृतं एकमणं प्रति फदिया१८ नायाकैः, कार्त्तिकादिमासप्रये समर्चता, माघमासेऽन्नमहघेता रोगपीडा महती, फाल्गुनमये राजा राज्यसुस्थः प्रजा सुखं अन्नसमता||४२|| सौम्यसंवत्सरे रुद्रः स्वामी, अल्पमेघः, गावोऽल्पक्षीराः, वृक्षा अल्पफलाः, चैत्रे महता, वैशाखे उद्दण्डवायुः, ज्येष्ठे विग्रहः, प्रजापीडा, आषाढेऽल्पमेघोऽन्नं महर्चे, श्रावणे महामेघः, धा ॥ ४१ ॥ कीलकवर्षका स्वामी विष्णु, मध्यम वर्षा, चैत्र में धान्य तेज, वैशाखमें रोग, मारवाडमें दुर्भिक्ष, पश्चिममें सस्ते, ज्येष्ठ में धान्य संग्रह करना, आषाढ श्रावण में थोड़ी वर्षा, अनाज भाव तेज, धान्यसे द्विगुना लाभ, भाद्रपद में अष्टमी तिथि से वर्षा, आश्विन में वर्षा, अनाज भाव तेज, राजधानी नगर में विनाश, रोग अधिक न हो, गेहूँ तेज, सबधान्य सस्ते, रस तेज; फर्दिया १८ का एक मग वी, कार्तिकादि तीन मास सस्ता, माघ मास में अनाज तेज, रोग पीडा अधिक, फाल्गुन में राजा स्वस्थ, प्रजाको सुख और अनाज भाव सम हो ॥ ४२ ॥ सौम्यवर्षका स्वामी रुद्र, अल्पवर्षा गाय थोडा दूध दें, वृक्षोंमें फल थोड़े, चैत्र में अनाज भाव तेज, वैशाखमें प्रचंड पवन; ज्येष्ट में विग्रह, प्रजा पीडा, आषाढमें थोडी वर्षा, अनाज तेज, श्रावणनें वर्षा अधिक, धान्यसे दूना लाभ, गेहूँ ५० फदिया } का कलशी बिकें, सब धान्य सम, रस तेज; भाद्रपद में खण्डवृष्टि अनाज "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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