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________________ (६४२) मेयमहोदये खी ॥४४॥ विरोधकृवत्सरे चन्द्रः स्वामी, मण्डपाचलदुर्गे वि. ग्रहः, कुङ्कणदेशे मेदपाटमण्डले मध्यदेशे महारौरवं, परस्परं राजविग्रहः, मार्गाविषमाः, चैत्रादिमासत्रयेऽन्नसमता, श्राषाढेऽल्पमेघः, श्रावणे महावर्षा, अन्नसमर्थता, भाद्रपदे मेघः अन्नसमतासर्वधातुमहर्षता, फाल्गुने देशविरोधः, मार्गवैषम्य, मंजिष्ठासोपारिकापहमूत्रदन्तमयवस्तुतुरङ्गमादिमहर्घता॥४५ परिधाविनि वत्सरे भौमः स्वामी, दुर्भिक्षं, नागपुरे मेदपाटे जालन्धरदेशे च राज्ञां विरोधः, चैत्रादिमासचतुष्टयेऽन्नसमता, तत्र संग्रहः कार्यः, लोके रोगपीडा, मरुदेशे मनुष्येषुमारिभयं, चतुष्पदमहिषीतुरंगहस्तिनां पीडा, श्रावणे भाद्रपदेऽल्पमेघः, खण्डवृष्टिरन्नसमता सर्वरससमघता सर्वे धातवःसम. र्घाः, कार्तिकादिमासपञ्चके धान्यसमता राजविड्वरं सिन्धुदे. शाद धान्यागमः॥४६॥प्रमाथिनि वत्सरे बुधः स्वामी, कुंकणे गुना लाभ, सत्र धातु तेज, सत्र रसका संग्रह करना उचित है, राजा दुःखी ॥ ४४ ॥ विरोधकृत्वर्धका स्वामी चन्द्र, मंडपाचलदुर्गमें विग्रह, कुंकण देशमें मेवपाटदेश में और मध्यदेश में महाघोर परस्पर राजविग्रह, मार्ग विषम, चैत्रादि तीन मास अन्नभाव सम, आषाढमें थोड़ी वर्षा, श्रावय में वर्षा अधिक, अन्न सस्ता, भाद्रपद में मेव, अन्नभात्र सम, सत्र धातु तेज, फाल्गुन में देश में विरोध, मार्ग में विषमता, मँजीठ सोपासे वस्त्र सूत दान्त की वस्तु और घोडा आदि तेज हो ॥ ४५ ॥ परिधावीवर्षका स्वामी मंगल; दुर्भिक्ष, नागपुर मेदपाट और जालंधर देशमें राजाओं में विरोधः चैत्रादि चार मास अनाजका भाव सम; उसमें अनाजका संग्रह करना; लोक रोगपीड़ा; मरुदेशमें महामारीका भय; चतुष्पद भैस घोड़ा और हाथीको पीड़ा । श्रावण भादोंमें थोड़ी वर्षा; खण्डवर्षा; अनाजका भात्र सम; सत्र रस सस्ते; सत्र धातु सस्ती; कार्तिकादि पांच मास धान्य सम: "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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