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________________ संवत्सराधिकार: अन्नकलशिकां प्रतिफदिया १०२, सवर्धीतुसमघः चतुष्पदपोडा। मार्गशीर्षादिमासा४ राजा सुस्थः, लोकाः सुखिनः ॥ ३१ ॥ विलम्बे वत्सरे रविः स्वामी, चैत्रवैशाखयोर्धान्यमहार्घता, भाषा श्रावणे धान्यकलशिकां प्रतिटंका ५ फदिया २५ लभ्यन्ते, आषाढे मेघोऽल्पः । श्रावणे महामेघः सुभिक्षं । भाद्रप दे दिन ११ वर्षा बहुला परं गोधूमाश्चणकाश्च महघी: पश्चि मायां सुभिक्षं राजविग्रहः पूर्वदेशेऽन्नं दुष्प्रापं दक्षिणदेशे राज्ञामन्योऽन्यं विरोधः, आश्विनेऽन्नमहर्घता रोगपीडा सर्व या कचस्तुमहर्घता, कार्त्तिकादिमासपञ्चके धान्यकलशिकां प्रति फदिया १० लभ्यन्ते ||३२|| विकारिवत्सरे चन्द्रः स्वामी, सर्वान्नवस्तुमहता द्विजाः सुखिनः । श्रादिमासत्रये धान्यमहार्घता, आषाढे श्रावणे च महान्मेघः सुभिक्षं, भाद्रपदे स्वल्पमेघः, आश्विने सर्पभय केतृदयः, अन्नकल शिकां १ हँगे हो, अभाव सम, कार्तिक में छत्रभंग लोकपोडा, दश फर्दियाका धान्य एक कलशी बिकें, सबधातु सस्ती, पशुओं में पीडा, मार्गशीर्षादि चार मास राजा शान्त रहे और लोक सुखी हो ३१ विलम्बीवर्षका स्वामी रवि, चैत्र वैशाखमें धान्य तेज, आषाढ श्रावण २५ फंदिया का कलशी धान्य बिके। आषाढमें वर्षा थोडी, श्रावण में महावर्षा और सुकाल, भाद्रपदमें दिन ११ वर्षां अधिक परंतु गेहुँ चणा तेज, पश्चिममें सुकाल राजविग्रह, पूर्वदेशमें अन्न दुष्प्राप्त, दक्षिणदेश में राजाओं मे परस्पर विरोध, आश्विनमें अनाजभाव तेज रोगपीडा, सब कयाणकरस्तु तेज, कार्तिकादि पांच मास में दश फदिया का कलशी धान्य विकें ॥ ३२ ॥ विकारीवर्षका स्वामी चन्द्र, सब प्रकार के धान्य और वस्तु महँगी हो ब्राह्मणको सुख, चैत्रादि तीन मास धान्य तेज, आषाढ श्रावण में महामेत्र और सुकाल, भादों में थोड़ीवर्षा, आदिन सर्पका भय, केतुका उदय, फडिया १ ● का कलशी धान्य बिकें, सब व "Aho Shrutgyanam" (१२५)
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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