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________________ (१३४) मेघमहोदये शुभ; अल्पमेघो महतां लोकानां पीडा; सरोगा लोका उतरापथे दुष्कालः; पश्चिमायां महापोडा; पूर्वदेशे सुभिक्षं; नं मह वैरं नकुलसर्पाभ्यां विषं गृह्यते; चैत्रादिमासत्रये समर्थ (४००) ता; आषाढेऽल्पमेघः । श्रावणे प्रचण्डवायुः सर्व धान्यमहघेता, भाद्रपदे कणानां मणं १ प्रतिद्राम्मा ८५ लभ्यन्ते; खण्डवृष्टिः; आश्विने रोगपीडा सर्वे धानवः समर्घाः कार्त्तिकादिमासा ४ रौरवं दुर्भिक्षं गोब्राह्मणपीडा जोजीयादयाः कराः प्रवर्तन्ते माता पुत्र विक्रया पिता पुत्रस्नेहमुक्तः फाल्गुने रोगपीडा; राज्ञां परस्परं विरोधः लोकपीडा ॥३०॥ हेमलम्बे राहुः स्वामी, अतिरौरवं सरोगा लोका भूकम्पादय उत्पाता वणिक्रीडा । चैत्र वैशाखमासयोर्धान्यादिमन्द भावः परचक्रागमः, ज्येष्ठादिमासन ये धान्यं महर्धे चतुर्गुणो लाभः, भाद्रपदे महामेघः, अन्नसमता मञ्जिष्ठामरिचलवंगदन्तमयवस्तुमर्ह्यता. अन्नसमता. कार्त्तिके छत्रभङ्गो लोकपीडा वर्षका स्वामी शनि अशुभ है, थोड़ी वर्षा, बड़े लोगोंको पीडा रोगप्राप्ति, उत्तर में दुष्काल, पश्चिम में महापीडा, पूर्व देशमें सुकाल, अनाज महँगा, द्वेष भाव चैत्रादि तीन मास सस्ता, आषाढ में थोड़ी वर्षा, श्रावण में प्रचण्ड プ वायु, सब धान्य तेज, भाद्रपद में धान्य मण एकका दाम ८५ हो, खण्ड वृष्टि, रोगपीडा, सत्र धातु सस्ती, कार्त्तिकादि चार मास घोर दुर्भिक्ष, गौ ब्रह्मको पीडा, माता पुत्रको बेचें, पिता पुत्रस्नेहसे रहित, फाल्गुन में रोगपीडा, राजाओं का परस्पर विरोध और लोकको पीडा हो ॥ ३० ॥ हेमलम्ब का स्वामी राहु है महादुःख, लोगों में रोग भूकम्पादि उत्पात, व्यापारियोंको पीडा, चैत्र तथा वैशाखमें धान्यादिका भाव मंदा, शत्रुका आगमन, ज्येष्ठादि तीन मासमें धान्य तेज होनेसे चतुर्गुणा लाभ, भाद्रपदमें महावर्षा, अन्नभाव सम, मँजीठ मिरच लोग और दांत की वस्तु ये म " Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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