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________________ . . ... .: संवत्सराधिकार -हार्घता, श्रावणे दुर्भिक्ष मध्यदेशे विग्रहः, दक्षिणस्यां प्रजापोड़ा, भाद्रपदे खण्डवृष्टिान्नमहर्घिता, आश्विने रोगपीडा, पूर्वस्यां विग्रहः गोधूममहार्घता चतुर्गुणो लाभः सर्वरसमहाघेता मध्यमः समयः, कार्तिके रोगपीडा यछा विग्रहोपशम:, 'मार्गमासेऽन्नमहार्घता नवरं युद्ध किञ्चित्, पौषादिमासद्वैयेऽतिमहार्घता, फाल्गुने समता परं मार्गस्थ वैषम्यमनं महाधम् ॥२०॥ इति उत्तमविंशतिका पूर्णा । . सर्वजिति वत्सरे ब्रह्मा स्वामी, चैत्रादिमासत्रय महर्थम्,'आषान्हेऽल्पमेघः, श्रावणे महामेंघा, सर्वधान्यरसवस्तुसमघता, नवीनमुद्रोदयः, राजविग्रहः, परस्परमन्नमहर्घता. भाद्रपदे दिनपश्च पश्चान्महती वृष्टिः, आश्विने रोगार्तिः सवैधान्यसमर्थता. कार्तिके राजा राज्यं करोति, प्रजासुखमनसमर्घता, मार्गशिरपौषो उत्तमौ सर्वलोकसुखं, माघमासे ग्रह, दक्षिण में प्रजापीडा, भाद्रपद में ग्वगड वर्षा और अन्न तेज, आश्विन में रोगपीडा, पूर्व में विग्रह, गेहूं तेज, व्यापारीयों को चोगुना लाभ , सब रसके भाव तेज, मध्यम समघ, कार्तिक गेग पीडा अथवा विग्रहकी शानदार मार्गशीर में अन्नभाव तेज, कुछ युद्ध का संभव, पोप मात्र में अधिक तेज, फाल्गुनमें समान पग्नु नार्गकी विषमता और अन्न भाव तेज ॥ २० ॥ इति उत्तम विंशतिका । .. ... 'सर्वजित्वर्षका स्वामी ब्रह्मा है, चैत्रादि तीन मास तेज,आषाढमैं थोड़ी वर्षा, श्रावणी महामेव, सर्व धान्य और रसकी वस्तु सस्ती, नवीन मुद्रा ( शिक्का ) चले, परस्पर गज विग्रह, अन्न महँगा, भाद्रपद में पाँच दिन पीछे बड़ी ना आश्विनमें रोग, सब धान्य सस्ता, कासिंकम राजा राज्य करें, प्रजा सुखी, अन्न सस्ता, मार्गशीर्ष और पौष उत्तम, संघ लोकमुंखी, माघमासमें दिन तीन वर्षा हो मँजीठ, मुहरा, मिरच, सोंठ पि १७ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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