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________________ १२८) । मेघमहोदये पेयुद्धं पश्चिमायां धान्यं महर्घम्. उत्तरापथेमहादुर्भिक्ष फाल्गुनमासो मध्यमः, तस्करपाशिकभयं, अन्नं महम्, विग्रहो राजविरोधाद् महत्पातकम्,पूर्वस्यां दक्षिणस्यां वा वनेवासा, प. श्चिमाया महायुद्धं परंधान्यवस्तु समर्घम्॥१८॥पार्थिवे शनि: स्वामी, उत्पातबहुलः, अन्नसंग्रहः कार्य:, चत्रे वैशाखे महाघेता सर्वतो विग्रहः, ज्येष्ठे रोगपीडा यानृपयुद्धं. भाषावे. ऽल्पमेघः, धान्यं महाघ महावायुः, श्रावणे खण्डवृष्टिः, भाद्र. पदे नैतो वायुः, अन्नमहार्घता, आश्विने वृष्टिः, गोधूमयुगन्धरीमुद्गादि महर्घ परंधातुवस्तुघृतमहर्घता, कार्तिकाविडये रोगपीडा, पौषमाघयोमहार्यता, फाल्गुने समता ॥१९॥ व्य. यवत्सरेराहुः स्वामी, अनावृष्टुिर्भिक्षं रौरवं, क्षेत्रो मध्यमः, वैशाखडये महार्यता देशविग्रहः, आषाढेऽल्पमेघः परं मन्य तेज, योगिनीपुर में बड़ा भय, राजाओं का विरोध, म्लेच्छका भय, पौष में युद्ध, पश्चिममें धान्ध तेज, उत्तरापथ में बड़ा दुष्काल, फाल्गुन मासमे मध्यम, तस्कर तथा पाशबालेसे भय, अन्नभाव तेज, विग्रह राजाओं के विशेधमे बड़ा पात हो, पूर्वके और दक्षिणके लोक बनवासी हों, पश्चिममें बड़ा युद्ध हो परंतु धान्य और वस्तु सस्ती हो ॥ १८ ॥ पार्थिववर्षका स्वामी शनि है, बहुत उत्पात हो, अन्नका संग्रह करना चैत्र वैशाखमें तेज, सम्र ओरसे विग्रह, ज्येष्ट में रोग पीडा अथवा नृपयुद्ध, आषाढ़ में थोडी वर्षा, धान्य महँगा, वायु अधिक, श्रावणमें खण्ड वर्षा, भादोंने नैऋत्यका. पवन, अन्नभाव तेज, आश्विन में वर्षा, गेहूँ जुभार मूग आदि तेज, धातु और बी तेज, कार्तिक मार्गशीरमें रोग पीडा, पौष माघमें तेज और फाल्गुनमें समान भाव रहे ॥ १६ ॥ व्यय वर्षका स्वामी राहु है, अनावृष्टि दुर्भिक्ष भौर दुःख हों, चैत्र मध्यम, वैशाख और ज्येष्टमें भाव तेज, देशमें विग्रह, आषाढमें थोडी वर्षा और तेजी, श्रावणमें दुर्भिक्ष, मध्य देशमें कि "Aho Shrutgyanam"
SR No.009532
Book TitleMeghmahodaya Harshprabodha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1926
Total Pages532
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size12 MB
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