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________________ प्रथम कल्लोलः भवेत् । अर्थान्तराद् विषमराशौ विषमांशस्थैश्च तैः पुत्रो भवेत् ध्र वम् । अथ समे समराशिगतैरेतैर्बलिभिः पुष्टैरथवा यत्र तत्र राशौ समांशगतैरथवा समराशी समांशगैर्वा एतैरङ्गना पुत्री भवतीत्यर्थः । प्रोजे विषमराशिगौ यत्र तत्र नवांशस्थौ अथवा विषमांशगौ वा बलिष्ठो अर्केज्यौ सूर्यगुरू यदि तदा सुतः। अथ शुक्र. न्द्वाराः शुक्रचन्द्रकुजाः युगे समराशिगता बलिष्ठा यदि तदा अबला स्त्री। एतेषां योगानां बाहुल्ये अथवा साम्ये बलाधिक्यात् पुत्रपुत्री निर्देश: कार्यः ॥१३॥ अब प्रश्न लग्न से या जन्म लग्न से पुत्र और पुत्री का ज्ञान-लग्न सूर्य, गुरु और चन्द्रमा ये बलवान होकर विषम राशि में रहे हों, अथवा विषम राशि के नवमांश में हों तो निश्चय ही पुत्र का जन्म कहना। इसी प्रकार लग्नादि चारों ही समराशि में हों अथवा समराशि के नवमांश में हों तो निश्चय ही पुत्री का जन्म कहना। एवं सूर्य और गुरु बलवान होकर विषम राशि में हों या विषम राशि के नवमांश में हों, अथवा विषम राशि में रहते हुए विषम राशि के नवमांश में हों तो पुत्र का जन्म कहना। इसी प्रकार शुक्र, मंगल और चन्द्रमा ये बलवान होकर सम राशि में हों या सम राशि के नवमांश में हों, अथवा सम राशि में रहते हए, सम राशि के नवमांश में हों तो पुत्री का जन्म कहना। इन योगों की अधिकता या तुलना में बल की अधिकता का विचार करके पुत्र या पुत्री का जन्म कहना ॥१३॥ अथ योगान्तरमाह: द्वघङ्गांशे तौ तु ते ज्ञाप्तौ स्वपक्षयुगहेतवे । लग्नत विषमे मन्दे नुर्जन्म समभे स्त्रियाः ॥१४॥ तौ सामीप्यात् अर्केज्यौ द्वयनांशे यत्र तत्र राशौ द्विस्वभावनवमांशगौ ज्ञाप्तौ बुधदृष्टौ यदि तदा स्वपक्षयुगहेतवे भवेताम् । स्वपक्षः पुत्रस्तस्य युगं युगलं तस्य हेतवे कारणाय भवत इत्यर्थः। तु अथवा ते शुक्रन्द्वारा द्वयङ्गांशे यत्र तत्र द्विस्वभावनवांशगा मीनकन्यांशगताश्च यत्र तत्र स्थितबुधदृष्टा यदि तदा स्वपक्षहेतवे स्वपक्षः कन्या, तस्य युगं युगलं तस्य हेतवे भवतः। पूर्वयोगे यद्यपि सामान्येन द्विस्वभावनवांशगानुक्तौ तथापि मिथुनधनुरंशगतौ विशेषेण ज्ञेयौ । अस्मिश्चयोगे मोनकन्योशस्थाविति । युगपद् योगद्वये बुधश्चेत् पश्यति तदा एकःपुत्रो द्वितीया पुत्रीति वाच्यम् । युगलापत्ययोगाभावे विशेषमाह-तु पुनर्लग्नत्तलग्नं विना विषमे त्रिपंचसप्तनवमलाभानामन्यतमस्थानस्थे मन्दे शनौ सति नु पुरुषस्य जन्म स्यात् । अपरं समभे द्वितीयचतुर्थषष्ठाष्टमदशमद्वादशानामन्यतमस्थानस्थे शनौ स्त्रिया जन्म स्यात् पुत्री भवतीत्यर्थः ।।१४।। सूर्य और गुरु ये द्विस्वभाव राशियों में हों या अन्य किसी राशि में रहे हुए द्विस्वभाव राशियों के नवमांश में हों और बुध देखता हो तो एक साथ दो पुत्र का होना "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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