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________________ जन्मसमुद्रः कहना । यदि शुक्र, चन्द्रमा और मंगल ये द्विस्वभाव राशियों पर हों, या अन्य किसी राशि पर रहते हुए भी द्विस्वभाव राशियों के नवमांश में हों और बुध देखता हो तो दो पुत्री का जन्म कहना । ये दोनों योग सामान्य रूप से कहे हैं, उनमें विशेषता यह है कि-सूर्य और गुरु ये मिथुन और धन राशि के नवमांश में हों और बुध देखता हो तो, तथा शुक्र चन्द्रमा और मंगल ये मीन और कन्या के नवमांश में हों और बुध देखता हो तो एक पुत्र और एक पुत्री, इस प्रकार दोनों का जन्म कहना । अब युगल संतान के अभाव में विशेषता यह है कि-लग्न को छोड़कर विषम स्थानों में अर्थात् तीसरे, पांचवें, सातवें, नवें या ग्यारहवें स्थान में शनि रहा हो तो पुत्र का जन्म कहना । और सम (२.४-६-८-१०-१२) स्थान में शनि रहा हो तो पूत्री का जन्म कहना ॥१४॥ अथ षट्षण्ढयोगानाह क्लीबोऽन्दू मिथो दृष्टा-वोजस्त्रीभस्थितौ यदि । ज्ञार्की वेत्थं नृभस्थार : स्त्रीभस्थाकं तु पश्यति ॥१५॥ यद्यर्केन्दू मिथो दृष्टौ परस्परदृष्टौ प्रोजस्त्रीभस्थितौ विषमसमराशिगौ तदा क्लोबस्तद्यथा-विषमराशिग सूर्यः समराशिगं चन्द्र पश्येत्, तथाकै विषमराशिगं समराशिगः शशी पश्येत् तदा क्लीब एको योगः। वा अथवा इत्थममुना प्रकारेण पूर्वोक्तेन ज्ञार्की बुधशनी परस्परदृष्टौ यथाक्रमं विषमसमराशिगौ यदि तदा द्वितीयः क्लीबयोगः । नृभस्थार इति नृभं नरराशिस्तत्रस्थ आरः कुजः स्त्रीभं समराशिस्तत्रस्थमकं पश्यति, यद्वा सूर्यः समराशिगः सन् विषमराशिगं कुजं यदि 'पश्येत् ततः क्लीबः । इति तृतीयो योगः ॥१५।। सूर्य विषम राशि में हो और चन्द्रमा सम राशि में हो परन्तु प्रापस में दोनों देखते हों तो नपुसक योग होता है । अर्थात् विषम राशि में रहा हुआ सूर्य, सम राशि में रहा हुमा चन्द्रमा को और विषम राशि में रहा सूर्य को सम राशि में रहा हुमा चन्द्रमा देखता हो तो नपुसक योग है ।१। इसी प्रकार विषम राशि में बुध हो और सम राशि में शनि रहा हो, परन्तु ये दोनों आपस में देखते हों तो नपुसक योग होता है ।२। एवं मंगल विषम राशि में हो परन्तु सम राशि में रहा हुआ सूर्य को देखता हो और सम राशि में रहा हुआ सूर्य विषम राशि में रहा हा मंगल को देखता हो तो नपुंसक योग होता है ॥१॥ अथ योगान्तरमाह वाङ्गन्दू ओजगौ स्त्रीभस्थारेक्ष्यौ वा समौजगौ । इन्दुज्ञौ यत्राङ्गारेक्ष्यौ वा ब्रशेऽङ्गसितेन्दवः ॥१६॥ वा अथवा अङ्गेन्दू लग्नचन्द्रौ प्रोजगौ विषमराशिगौ स्त्रीभं समराशिस्तत्रस्थो यः कुजस्तेन ईक्ष्यौ दृष्टौ यदि तदा क्लीबः। वा अथवा इन्दुज्ञौ शशि "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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