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________________ जन्मसमुद्रः भाई को अशुभ फलदायक होता है। एवं शनि समराशि में हो और जन्म रात्रि में हो तो पिता को और दिन में जन्म हो तो पिता के भाई को अशुभ फलदायक होता है ॥१०॥ अथ मातृमातृष्वसृ शुभाशुभज्ञानमाह युनिशोः समभे शुक्र मातुर्मातृष्वसुः शुभः । विषमः च जातः स्याद् अशुभः क्रमतस्तयोः॥११॥ शुक्रे समभे समराशिगे दिनजो मातुर्भव्यः, निशाजातो मातृष्वसुः शुभः स्यात् । च परं विषमे विषमराशिगे शुक्रे क्रमात् तयोर्मातृमातृष्वस्रोरशुभः। दिवाजातो मातुरशुभः, रात्रिजातो मातृष्वसुरित्यर्थ ।।११।। ____ अब माता और मौसी के शुभाशुभ को कहते हैं-वृष, कर्क आदि समराशि पर शुक्र हो और जन्म दिन में होवे तो माता को और रात्रि में जन्म होवे तो माता की बहिन (मौसी) को शुभ फलदायक है। परन्तु मेष, मिथुन आदि विषम राशि पर हो और जन्म दिन में हुआ हो तो माता को और रात्रि में जन्म हा हो तो मौसी को अशुभ फलदायक होता है ॥११॥ अथान्यद् योगान्तरमाह रात्रावोजे विधौ मातुर्दिवामातृष्वसुः खलः। चन्द्र च समभे जातो भव्यस्तयोस्तथा यथा ॥१२॥ विधौ चन्द्र प्रोजे विषमराशिस्थे रात्रौ जातो मातुः खलोऽशुभः, दिवाजातो मातृष्वसुः खलोऽशुभकृद् भवेत् । चन्द्र समराशिगे सति तयोर्मातृमातृष्वस्रोस्तथा यथा उक्तप्रकारमार्गेण शुभः। रात्रिजातो मातृभव्यः, दिवाजातो मातृष्वसुरित्यर्थः । शास्त्रान्तरात् लग्नात् पञ्चमे पुष्टचन्द्र मातुः शुभम्, लाभस्थेऽर्के पितुः शुभमिति ।।१२।। चन्द्रमा विषम राशि में हो और बालक का जन्म रात्रि में हो तो माता को और दिन में जन्म हो तो माता की बहिन को प्रशभ फलदायक होता है। यदि चन्द्रमा समराशि पर हो और जन्म रात्रि में हो तो माता को और दिन में जन्म हो तो मौसी को शुभ फलदायक होता है । अन्य ग्रंथों में कहा है कि जन्म-लग्न से पांचवें स्थान में बलवान चन्द्रमा हो तो माता को और ग्यारहवें में सूर्य हो तो पिता को शुभ फलदायक है ॥१२॥ अथ प्रश्नलग्नाज्जन्मलग्नाद्वा पूस्त्रीज्ञानमाह लग्नार्केज्येन्दुभिः पुष्ट-रोजेंऽशे ना समेङ्गना। ओजेऽर्केज्यौ सुतो वांशे शुक्रन्द्वारा युगेऽबला ॥१३॥ प्रोजे विषमराशिगतैर्लग्नार्कगुरुचन्द्रः पुष्टैर्बलिभिः ना पुमान् भवेत् । अथवा भिन्नविभक्तिदानात्, यत्रतत्र राशौ प्रोजेंऽशे विषमांशगतैस्तैरेव ना पुत्रो "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
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