SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम कल्लोलः शब्दोऽथवा वाची । तथार्के रवौ यत्रतत्रस्थे एकान्ययुग्दृशि कुजशन्योर्मध्यादेकेन युते परेण दृष्टे पुंसो रोगः । एवमब्जे चन्द्र सति स्त्रिया मृत्युर्भवति । अर्थान्तरात् सूर्याच्चन्द्रात् सप्तमेद्वितीये व्यये शुभैर्युते दृष्टेऽथवा रवौ चन्द्र वा शुभयुतदृष्टे पुंस्त्रियोः सुखमारोग्यं च । शास्त्रान्तरात् शुक्रे पापद्वयमध्यगते सूर्ये चन्द्र च सौम्यादृष्टे स्त्रियोर्युगपदेव मृत्युः ॥६॥ अब पुरुष और स्त्री के शुभाशुभ को बतलाते हैं—सूर्य से सातवें स्थान में शनि या मंगल हो तो पुरुष को रोग या मृत्यु कहना । एवं चन्द्रमा से सातवें स्थान में शनि या मंगल हो तो स्त्री को रोग या मृत्यु कहना । यह रोग या मृत्यु योग करने वाले बलवान ग्रह के महीने कहना । एवं सूर्य से शनि और मंगल इन दोनों में से एक दूसरे और दूसरा बारहवें स्थान में हो तो पुरुष को रोग, तथा चन्द्रमा से शनि और मंगल दूसरे और बारहवें स्थान में हो तो स्त्री को रोग कहना । मंगल और शनि इनमें जो बलवान हो उसके महिने में रोग या मृत्यु कहना । एवं किसी भी स्थान में रहे हुए सूर्य के साथ शनि या मंगल इनमें से कोई एक ग्रह साथ हो और दूसरा देखता हो तो पुरुष को रोग या मृत्यु कहना । एवं चन्द्रमा के साथ शनि या मंगल इनमें से कोई एक हो और दूसरा देखता हो तो स्त्री को रोग या मृत्यु कहना । एवं सूर्य या चन्द्रमा से सातवें, दूसरे या बारहवे स्थान में शुभ ग्रह रहे हों या साथ रहे हों या देखते हों तो पुरुष या स्त्री को सुख और आरोग्य कहना । अन्य ग्रंथों में कहा है कि- शुक्र यदि दो पापग्रहों के बीच में रहा हो और सूर्य या चन्द्रमा को कोई शुभग्रह न देखता हो तो पुरुष और स्त्री की एक साथ ही मृत्यु कहना ॥६॥ अथ पितृपितृव्ययोः शुभाशुभज्ञानमाह- ओजेऽर्के युनिशोजतो मव्य: पितृपितृव्ययो: । निशाहयोस्तयोश्चा की समर्क्षे वाऽशुभस्तदा ॥ १०॥ लग्नादोजे विषम राशिस्थे मेषमिथुनादिराशिस्थेऽर्के सूर्ये दिवाजातः पितुभव्यो बालः, निशाजातः पितृव्यस्य च । परं शनौ प्रोजे विषमराशिगे निशायां जातः पितुर्भव्यो बालः । दिवाजातः पितृव्यस्य । वा अथवा समर्क्षे समराशिस्थे वौ दिवा जन्मनि पितुरशुभः, निशाजातः पितृव्यस्य च । एवं शनौ च समराशिगे रात्रौ जातः पितुरशुभः, दिने जातः पितृव्यस्याशुभ इत्यर्थः ।। १०॥ पिता और चाचा ( काका ) के शुभाशुभ का ज्ञान कहने हैं— मेष, मिथुन आदि विषम राशि में सूर्य हो और बालक का जन्म दिन में होवे तो वह बालक पिता को शुभ फल देने वाला है और रात्रि में जन्म होवे तो पिता के भाई को शुभ फलदायक 1 एवं शनि विसम राशि में हो और बालक का जन्म रात्रि में होवे तो पिता को और दिन में जन्म होवे तो पिता के भाई को शुभ फलदायक होता है। यदि वृष, कर्क आदि समराशि में सूर्य हो और बालक का जन्म दिन में हो तो पिता को और रात्रि में जन्म हो तो पिता के "Aho Shrutgyanam"
SR No.009531
Book TitleJanmasamudra Jataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherVishaporwal Aradhana Bhavan Jain Sangh Bharuch
Publication Year1973
Total Pages128
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy