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________________ समकित के सडसठ बोल की सज्झाय से मधुर आस्वाद, स्पष्ट बोध तथा विकसित श्रद्धा मिलती है । (४३) से जारि विमोठार यदि 'श्रीप्रवचनसारोद्धार' का अध्ययन किया जाए तो सभी आगमो का रहस्य स्पष्ट हो जाता है । (४४) "लोकप्रकाश' से द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को जानकर सम्यक्दृष्टि बना मनुष्य उन्मार्ग पर नहीं जाता है । (४५) "त्रिषष्टिशलाकाचरित' नामक ग्रन्थ समुद्र है। यहाँ कथाएँ लहरी है। स्तुति और देशना जलगर्जना के स्वर है । कर्मग्रन्थ से उत्तर प्रकृतियों सहित कर्मों के आठ भेदों का ज्ञान प्राप्त कर के कर्म बन्ध के हेतुओं का सहज त्याग करना चाहिए । (४७) अन्य भी असंख्य कल्याणकारी ग्रन्थ है, जिनके अध्ययन से तत्त्वज्ञान पूर्णतया समुल्लसित होता है । (४८) चौथा प्रस्ताव
SR No.009509
Book TitleSamvegrati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamrativijay, Kamleshkumar Jain
PublisherKashi Hindu Vishwavidyalaya
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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