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________________ बोहिलाभो अ मुझे सदृष्टि प्राप्त हो ! संसार में रहकर भी संसार मेरे भीतर न प्रवेश जाएँ ऐसी कला मुझे सीखा दो। "संसार मेरा नहीं है, संसार अच्छा नहीं है इतनी सुमति मुझे मिल जाएँ तो मानो कि मुझे सब कुछ मिल गया / हे परमात्मा ! आपके पदकमल में शीश झुकाकर मैं प्रार्थना करता हूँ। मेरी प्रार्थना का आपने स्वीकार किया या नहीं ? वह तो मैं अपने आप में होने वाले परिवर्तन के द्वारा जान सकूँगा। मेरी योग्यता को जाने बिना मैंने आपसे माँगा है, आपकी प्रभुता देखकर / आपकी प्रभुता पर मुझे पूरा विश्वास है हे प्रभु ! मेरे जीवन की तमाम समस्याओं का मूल है संसार पर का गाढ़ विश्वास और तीव्र आसक्ति / इस आसक्ति के कारण संसार के सभी पदार्थों प्रति आकर्षण पैदा हुआ है। और इस आकर्षण के कारण मुझ में गलत अभिगम उत्पन्न हुआ है। 'संसार अच्छा है और संसार मेरा है' यही अभिगम अब मुझे सच्चा लगने लगा है। और इसलिए ही संसार मेरे आत्मा के अणुअणु में व्याप्त हो गया है। आपकी कृपा के बल पर सारे संसार से मुझे मुक्ति मिलें / ऐसी मेरी मनोकामना है। लेकिन जब तक मुझे इस संसार से मुक्ति न मिलें तब तक मुझे कमलपत्र जैसी निर्लेपता के स्वामी बना दो, जिससे ये संसार मेरे अन्तरात्मा को अछूत न कर जायें / पानी में पड़ा हुआ नमक का टुकडा पिगल जाता है, क्योंकि वह पानी को भीतर प्रवेश देता है। लेकिन पथ्थर पानी में रहकर भी पिगलता नहीं है, क्योंकि वह पानी को अपनी उपरी सतह से आगे जाने ही नहीं देता / संपज्जउ मह एअंतुह नाह पणाम करणेणं / आपको प्रणाम करने से मेरी ये प्रार्थनाएँ सफल हो सर्व मंगल मांगल्यं, सर्वकल्याण कारणम् / प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् // सर्व मंगल में श्रेष्ठ सर्व कल्याण कर सर्वश्रेष्ठ श्रीजैनशासन जयवंत है। -33 -34
SR No.009506
Book TitleChahe to Par Karo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2005
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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