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________________ समाहिमरणं च और मृत्यु के समय समाधिभाव मीले । गुजराती में एक है। कहावत है "अघु सारं नो अंत सारो" (जिस का अन्त अच्छा, वह सब कुछ अच्छा ) हे प्रभु! एक दिन मेरे जीवन का अन्त आना ही है, कब ? कहाँ ? कैसे ? वो मैं नहीं कह सकता । मेरा अन्त अच्छा होगा या बूरा ये मैं नहीं जानता । लेकिन अच्छा अन्त लाने के लिए शुरूआत भी अच्छी होनी चाहिए, मध्यांतर भी अच्छा चाहिए और गति भी अच्छी ही होनी चाहिए। अच्छे फल पाने के लिए बीजांकुर का भी अच्छा होना उतना ही जरुरी है। और साथ साथ खाद और पानी भी उचित मिले ये बहुत आवश्यक है। मेरे जीवन में सद्गुणों के कई बीज केवल अच्छे खाद और पानी के अभाव से निष्फल गए हैं। मरना तो निश्चित है लेकिन लाचार बनकर, जिन्दगी की भीख माँगकर, दीन-हीन बनकर, रोते हुए, हृदय में तृष्णा ३० और लालसा को साथ, मन में इर्ष्या और शरीर में वेदना लेकर मुझे नहीं मरना है। मुझे तो हँसते-हँसते मरना है। मरना नहीं है, मुझे तो मृत्यु से भेटना है। हे प्रभु! मैं जानता हूँ । जिसके जीवन में, जिसको जीते जी कभी "समाधान" न मिला हो उसे मृत्यु के समय "समाधि" मिल सकती है ? अगर अमृत पीना है तो हाथ में पकड़े हुए जहर के प्याले को फेंकना ही पड़ता है। उसी प्रकार जीवन में अगर समाधान चाहिए तो हृदय में रखे हुए संघर्ष का त्याग भी करना ही पड़ता है। हे परमात्मा ! संसार के कपोल कल्पित सुख की सामग्री का संग्रह करने के लिए मैं बेमिसाल संघर्ष करता रहा हूँ। संघर्ष किये बिना संसार का सुख नहीं मिलता । संघर्ष का मतलब होता है अपने और परायों के दिल में पैदा हुए कषाय और क्लेश का मिश्रण । हे प्रभु ! मैं अच्छी तरह से मरना चाहता हूँ इसलिए ही मैं अच्छी तरह से जीना चाहता हूँ। - ३१~ उत्तम जीवन के लिए मैं संघर्ष नहीं करूँगा । संघर्ष का जवाब नहीं दूँगा । किसी का भी बूरा नहीं सोचूँगा । किसी का भी बूरा नहीं बोलूंगा । किसी का भी बूरा नहीं करूँगा । मैं आपको यह वचन देता हूँ । हे प्रभु ! अब तो मुझे तारोगे न ? मन में न मान होवे, दिल एकतान होवे, तुम चरण ध्यान होवो, जब प्राण तन से नीकले । -३२
SR No.009506
Book TitleChahe to Par Karo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2005
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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