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________________ कम्मक्खओ मेरे सारे कमों का नाश हो। हे प्रभु! तेरा भक्त होकर मेरी दुर्गति हो, क्या ऐसा तुमको शोभा देगा? क्या तुम मुझे इससे छुटकारा नहीं दोगे? मुझे तुम पर पूरा यकीन है प्रभु ! तुम मुझे जरुर छुडवाओगे। तुम ही मुझे मुक्त कराओगे, इन दुःखों से, दोषों से, दुर्मति से और दुर्गति से। एक राजा ने सुप्रसिद्ध चित्रकार को चित्र बनाने की आज्ञा दी। विषय दिया-"पृथ्वी पर का स्वर्ग" इसकी खोज में चित्रकार बहुत घुमा । आखिर में उसने उसी नगर के एक छोटे-से बच्चे का खिखिलाकर हँसते चहेरे का चित्र बनाकर राजा को बताया। राजा अति प्रसन्न हुआ। कई साल बीत गये । राजा ने चित्रकार को फिर यदि किया। एक और चित्र बनाने का हुक्म दिया। इस वक्त विषय दिया - "पृथ्वी पर का नर्क।" चित्र की खोज में चित्रकार इस वक्त भी बहुत घुमा । इस वक्त वह केदखानो में गया । एक बहुत बड़े गुनेगार की मुलाकात ली और उसका चित्र बनाया। चित्रकार ने सोचा कि इसबार भी मेरा यह चित्र जगविख्यात बनेगा। उस गुनेगार ने चित्रकार से पूछ : 'आप मुझे पहचानते हो?' चित्रकार ने कहा - "नहीं।" गुनेगार ने उत्तर दिया - "कई साल पहले एक छोटे बच्चे का आपने चित्र बनाया था।" चित्रकार ने कहाँ - "हाँ।" -२८ तब गुनेगार बोला - "मैं वही बालक हूँ।" हे प्रभु ! इस रुपककथा में और मेरे जीवन में फर्क सिर्फ इतना है कि मेरी जिन्दगी का चित्रकार भी मैं ही हूँ। कुविचार और कुसंस्कार की बदी के बीच जीकर नन्दनवन जैसी इस सुहावनी जिन्दगी को मैंने स्मशान जैसी भयावह बना दी है। इसके लिए कर्मों को दोष देकर मैं कर्मों के फल से मुक्त होने की कोशिश करूँ वह व्यर्थ है। क्योंकि बबूल के शूलों को मेरे हाथों से बोने का पागलपन भूतकाल में मैंने ही किया है। और वर्तमानकाल में मैं उसे जड़-मूल से काटने के बजाय उसकी शाखाएँ काटने की दूसरी बड़ी मूर्खता कर रहा हूँ। मुझे कर्मों के फल से या कर्म से नहीं, किन्तु कुविचार और कुसंस्कार से बचने की जरुरत है। मेरे अंत:करण में से सुख का प्रेम और दुःख का डर, धन की लालसा और भोग की लालच, हृदय की वक्रता और बुद्धि की विचित्रता जैसे अनेक कुविचार और कुसंस्कार दूर हो जाएँ ऐसे विचार और संस्कार की मुझे पात्रता दें। बस इतना ही मैं मांगता हैं।
SR No.009506
Book TitleChahe to Par Karo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2005
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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