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________________ १३) श्रेणिक महाराजा से छुटे हुए तीर ने गर्भवती हिरनी को मार गिराया। हिरनी और पेट का गर्भ दोनो तडप कर मर गये। श्रेणिक को जब मालुम पडा, तब उसने पाप की प्रशंसा की । इस तरह हिंसा की अनुमोदना द्वारा खूब गाढ़ निकाचित कर्म बंध किया। बाद में धर्म तरफ अत्यंत श्रध्धा उत्पन्न हुई और आराधना की, तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन भी किया परंतु उसे नरक में जाना पड़ा । कल से कोई ऐसा कहे कि पुरी सृष्टि इश्वर ने मनुष्यों के लिये ही बनायी है तो फिर शेर और चित्ता भी ऐसा कह सकते है कि प्रभु ने मनुष्य सृष्टि हमारी खोराक के लिए बनायी। फिर उसका परिणाम क्या आयेगा ? किसी को बचाना वह हिमालय उठाने जितना बडा कार्य है, अति दुष्कर कार्य है। परंतु किसी को मारना अति सरल है, उसमें कोई बड़ी बात नहीं है। चप्पु या बंदूक से पल भर में किसी को भी आप मार सकते है। मरना कितने को आता है ? और मारना किसे आता है ? मारना लाखो लोगों को आता है। रोज अखबार में समाचार पढ़ते है कि पुत्र ने पिता को मारा, भाई ने भाई को मारा, पतिने पत्नि को मारा, सास ने बहु को मारा । सब को मारना आता है। परंतु मरना कितने को आता है ? यहाँ आत्महत्या की बात नहीं है, कत्ते के जैसी मोत की बात नहीं है । यहाँ तो मृत्यू को महोत्सव मनाकर हँसते हँसते मरने की बात है। किसी ने दुःख से छुटकारा पाने के लिये आत्महत्या कर ली । पर आगे के परिणाम के बारे मे सोचा ? अतप्त तृष्णा, वासना अपूर्ण इच्छा के साथ आर्त और रौद्र ध्यानमें बेचारा मर तो गया, पर बाद में प्रेत योनि में व्यंतर-राक्षस, चुडेल, भूत बनकर तृष्णा में ही भटकता रहेगा। हजारो साल तक इन जीवात्माओं की मुक्ति नहीं होती। उसके बाद भी अनेक जन्म में वह भटकता ही रहेगा। अनेक जन्म बरबाद करने के बदले थोडा सा दुःख सहने में कुछ बुराई नहीं है। मनुष्य जन्म अति मूल्यवान है। यहाँसे ही सर्वोच्च गतिप्राप्त होती हैतोउसे व्यर्थक्योगँवाना ? पशु पंखी बेचारे, निर्दोष प्राणी है, जो जंगली घास खाकर गुजारा करते है, नदी-नाले का पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते है, उन्होंने आपका क्या बिगाडा ? ऐसे निर्दोष प्राणीओं की हत्या क्यों ? नरक की दुर्गति ऐसो घातकी, क्रूर और हिंसक मानवो के लिये आज भी तैयार है। १४) विश्व में चारो और कितनी हिंसा ? जिसकी कोई गिनती नहीं जिसकी कोई सीमा नहीं जिसका कोई अंत नहीं और जिसकी कोई मर्यादा भी नहीं। आज के समय में भिन्न र कारणों से अत्याधिक हिंसा हो रही है। कहीं पर खाने के लिये तो कई जगह मौज शौक, सौंदर्य प्रसाधनों के लिये या फिर वस्त्र आदि को बनाने में हिंसा हो रही है। कुछ क्षेत्रो में व्यापार के लियेभी खूब बडे प्रमाण, में हिंसा चल रही है। आधनिक कत्तलखानों में एक ही दिन में १५-२० हजार गाय, बैल, बकरी आदि का वध किया जा रहा है। एक ही झटके में ५00 (पांचसौ) मेंडको मारा जा सकता है। ऐसी तेकनीक को चीन, बैंगलोर के मत्सत्य संस्था ने विकसित करी है। उसे कई गुना अधिक भी किया जा सकता है। अरेरे ! अफसोस की भारत जैसे आर्यदश को आज विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिये हजारो टन मेंडको की, हजारो टन मांस और हजारो टन मछलियों का व्यापार करना है। (बुचरखाने) कत्लखाने में पशुओं का वध किया गया, खून की नदिया बहाई गई, बडे २ ड्रम आदि भरकर दवाई की कम्पनियों ने सौंदर्य प्रसाधन आदि बनाने वाली कम्पनियों के खरीद कर उसका रुपांतरण कर अपने (ग्राहक) के पास भेज रही है। कई एलोपेथीक, दवाई प्राणीजन्य हो गई है। इन दवाइयो का डॉकटर अपने मरीजो के ऊपर जाने या अनजाने उपयोग कर रहे है। __ मांसाहारी मनुष्य मांस का उपयोग करता है। चमार चमड़े से जुते-चप्पल बनाता है और हम आप उसे खरीदते है । हड्डियों का पावडर बना कर उसमें सुगंधित वस्तुएँ मिलाकर आकर्षक डिब्बों में पैक कर बेचा जाता है। पशुओ की चर्बी का उपयोग शुद्ध घी में मिलावट में होता है और लोग भी उसे खरीद कर खाते है। हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (24)
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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