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________________ नरएस वेअणाओ अणोवमाओ असायबहलाओ। कायनिमित्तं पत्तो अणंतखतो बहुविहाओ ।। भावार्थ : जीव ने काया के द्वारा अनुपम अशाता वेदनीयता, परम रुदनवाली विविध वेदनाएँ अनंतीवार प्राप्त की है। जो स्त्री अपने पति पर दोषारोपण कर अन्य पुरुष का चिंतवन करती है, वे स्त्रिर्या शाल्मलीवृक्ष पर अनेक प्रकार से पीडा सहती है। नास्तिक, मर्यादा का भंग करनेवाली, लोभी, विषय लंपट, पाखंडी, अकृतज्ञ छ: नारको में जाती है। ___ इमीसे णं भते । रयणप्पहो पुढवीए नेरइया एक्रसमएणं केवतिया उववजंति ? गोयमा जहण्णेणं एक्रो वा दो वा तिन्नि का उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंख्यज्जा वा उवज्जंति एवं जाव अधे सत्तमाए। हे भगवान । वह रत्नप्रभा पृथ्वी में एक समय में कितने नारकजीव उत्पन्न होते है ? है गौतम, जधन्य से एक, दो या तीन, उत्कृष्ट से संख्याता या असंख्याता नारकीजीव पैदा होते है। इस प्रकार से सातवी नरक तक का जाना। राजा की रानी की इच्छा करने वाले परस्त्री का अपहरण कार, अपरणित कन्या और सती स्त्री को दुषण देनेवाले दुष्ट नरक में जाता है। झूठी साक्षी देनेवाले, कूटनिति करने वाले छल कपट से द्रव्य कमाने वाला, चोरी करनेवाला, वृक्ष छेदन करनेवाला वन-उपवन-उद्यान बगीचा का विनाश करनेवाला, अव्रती बनकर विधवा के शील का भंग करनेवाले मनुष्य अवश्य नरक में जाता है। शस्त्राणां ये च कर्तारः शराणां धनुषां तथा । विक्रेताश्व ये तेषां ते वे नरकगामिनः ।। भावार्थ : जो हथियार बनाते है धनुष्य बनाते है, या उसे बेचते है सचमुच नरक में जाते है। नरकगति में भाला के अग्न भाग से भेदाना, करवत से मस्तक अलग होना, शुली पर चढ़ाना कुंभार के भट्टे कुंभि में पकाना, असि पत्रवन से नासिका और कर्ण का छिदवाना, कदस्थ पुष्पाकार रीत से रेती पर चलना इत्यादि अनेक प्रकार के दुःख निरंतर रहते है, पलक झपकने तक के क्षत्र मात्र भी सुख नहीं है। जहां इहं अगणी उण्हो, एत्तोऽणंतगुणो तहिं । नरएसु वेयणा उण्हा, असाया वेझ्या मए || जहा इहं इमं सीयं एत्तोऽणंतुगुणो तहिं। नरएम वेयणा सीया, असाया वेझ्या मए ।। भावार्थ : यहाँ पर अग्नि जितना उष्ण है, उससे अनंत गुना उष्ण नरक में है, नरकों में मैंने उष्ण अशाता वेदना को सहा है यहाँ जितनी ठंड है उससे अनंता गुना ठंड वहाँ है, नरको में मैंने ठंड की अशाता वेदना भी सही है। देवद्रव्य का उपभोग करनेवाले भयंकर दरिद्रता से जन्मजन्मांतर भव अटवि और नरकगति में फंस जाते है। ___ श्रीकृष्ण प्रबल वेदना से ग्रस्त तीसरी नरक से निकलकर आनेवाली उसर्पिणी में जंबूद्विप में भरतक्षेत्र के पुंढदेश के अंतद्वार नगर में बारहवाँ अममस्वामी नाम से तीर्थंकर होंगे । वहाँ से सिदिगति में जायेंगे। ___एक ही बार बोला हुआ असत्य कितने ही सत्य वचनों का नाश करता है। एक ही असत्य वचन के कारण वसुराजा नरक में गया। गोयमा ! नेरइया सीतं वेयणं वेयंति, उसिणं वेयणं वेयंति सीतोसिणं वेयणं वेयंति ।। भावार्थ : हे गौतम, नारको शीत वेदना सहते है, उष्ण वेदना सहते है, शीतोष्ण वेदना सहते है। वह रेवती(गृहपतिनी) सात रात्री में विशुचिका, विशेष लक्षण की बिमारी से ग्रस्त होकर आर्त ध्यान में काल को प्राप्त कर रत्नप्रभा नामकी पृथ्वी में लोलुक नरक आवास में (८४) चौन्याँशी हजार वर्ष के आयुष्यवाले नारको में नारकी की तरह पेदा हुई। नेरइयत्ताए कम्म पकरेता नेरइएसु उववज्जन्ति तंजहा महारम्यमाए महापरिग्गहयाए पन्दियवहेणं कुणिमाहारेणं। भावार्थ : नारक योग्य कर्म कर के जीव नारकी में पैदा होता है वे कर्म चार प्रकार के है महाआरंभ, महापरिग्रह, पंचेन्द्रिय वध और मांस भक्षण करना। णगउववाते परियायं एति परिपच्चंति। नरक में उत्पन्न होने के बाद जीव परिताप और दुःख प्राप्त करता है। हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (18)
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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