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________________ (१) नरक दुःख वेदना अति तीव्र... सर्वज्ञ भगवंतो ने अपने ज्ञानबल से इन नरकों को प्रत्यक्ष रुप से देखकर इसका वर्णन किया है। वर्तमान में सूयमडांग सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, जिवाभिगम सूत्र आदि । अनेक आगम शास्त्रो में उपरांत कुवलयमाला, उपमिति भव प्रपंचा कथा, भव-भावना, लोक प्रकाश, त्रिषष्टिशलाका पुरूष चरित्र, बृहत संग्रहणी, देवेन्द्र नरकेन्द्र प्रकरण इत्यादि अनेक शास्त्रों में भी नरकगति का वर्णन प्राप्त होता है | श्री उमास्वाति लिखित तत्वार्थ सूत्र में भी इसका बखूबी वर्णन है | नर्क से बचने के लिये संयम, तप प्रभु भक्ति, साधुसाध्वी वैयावच्च आदि गुणों को आत्मसात कर इस जीवन को सफल बनाये और मुक्ति (मोक्ष) पाइये। गर्भपात कराने वाली महिलायें, करने वाले डॉकटर लोग या उसे प्रोत्साहित करनेवाले आदि सब नर्क में जाते है। वहाँ पर वे अति भयंकर अवर्णनीय दुःख सहन करते है । सात व्यसन और अंडे आमलेट आदि खानेवाला मांसाहारी जीव भी तीव्र पापोदय से नरक में जाते है। मांसाहारी मछुआरे, कसाई, बडे हिंसक प्रोजेक्ट को अमल में लानेवालो, गर्भहत्या करनेवाले डॉकटर, ऐसी माताएं और उसके सहायक सर्व जीव नरक गति का आयुष्य बाँध कर यहाँ से मृत्यु के पश्चात निष्कुट नरकमें उत्पन्न होते है। शेर भालु, चिता, बिल्ली हिंसक पक्षी जानवर या घुबड, उल्लु जैसे हिंसक पक्षी भी नरक आयुष्य बाँधकर नरक में उत्पन्न होते है। १ सागरापोम-१० करोड पल्योपम, १० करोड पल्योपम-असंख्य वर्ष,१धनुष्य-४हाथ हाथ-२४ अंगुल | पृथ्वी के नाम गोत्र के नाम जधन्टा आयुष्य १. रत्नप्रभा धम्मा वंशा २. शकराप्रभा ३. वालुकाप्रभा ४. पंक प्रभा ५. धूम प्रभा ६. तमः प्रभा शैला अंजना रिटा १० हजार वर्ष १सागरोपम ४ सागरोपम ७ सागरोपम १० सागरोपम १७ सागरोपम २२ सागरोपम उत्कृष्ट आयुष्य देहभान धनु अंगुल १ सागरोपम ९१११६ ३ सागरोपम १५११११२ ७ सागरोपम ३१११ १० सागरोपम ६२१११ १७ सागरोपम १२५ २२ सागरोपम २५० ३३ सागरोपम ५०० मधा ७. महातमः प्रभा माधवती समस्त समुद्रों का सर्व जल पीने के बाद भी तृषा शांत न होती है। ऐसी सतत खुजली रहती है। तीव्रता इतनी । कि तीक्ष्ण छुरिओं से खुजालने पर भी न मीटे । खुजली की पीड़ा अर्थात परवशता - अन्य पर आधीन रहने की वेदना नारकों को सदैव रहती है। बुखार, तो यहाँ के उत्कृष्ट ज्वर से भी अनंतगुना होता है। सुख में व्यतीत नहीं होता। ___नर्कागार में ऐसी तीव्र पीडा सहन करते हुए सम्यक दृष्टि जीव प्रायः यह सोचता है की जीव पूर्व के अशुभ कर्म जिसे तुमने स्वयं किये है उसका यह परिणाम है इसलिये अगर तुझे रोष करना है तो अपने कर्मो पर करना अन्य किसी पर नहीं कारण परमात्माने कहा है कि - जीव को दुःख या सुख जो प्राप्त होता है, वे सब पूर्व के कर्मो का फलविपाक है, अन्य तो इसमें सिर्फ निमित्त होते है । (परमधामी आदि) ___ ऐसे शुभ ध्यान से तीव्र वेदना को सहता हुआ अशुभ कर्मो को खतम करके नरक में से नीकलते राजकुल आदि में उत्पन्न होकर क्रमश : सिद्धिगति(मोक्ष) प्राप्त करता है। नारकी जीवों की पीडा देख क्रूर स्वभावी परमाधामी आनंदित होते है। परमाधमी देव पापी और निर्दयी होते है। (13) हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!!
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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