SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूर्व भव में पंचाग्नि आदि बाल तप(अज्ञान तप) के फल स्वरूप उनको देव की समृद्धि प्राप्त हुई होती है। (३) नरक के दुःखो से छुटकारा पाने के उपाय * सोउण णिरयटुटखां तवचारणे होइ जइयटवं ।। - सूयगडांग-नियुक्ति __ अच्छे भाव न आने की वजह से जीव हरदम अशुभ भाव और भयंकर पाप करके नरक में जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं। अरे जो जीव कुछ समय बाद नजदिक के भविष्य मे तीर्थंकर बनकर मोक्ष में जानेवाले है, वे श्रेणिक महाराजा, कृष्ण वासुदेव, लक्ष्मण, रावण आदिजीव भी अभी नरक में घोर यातना भुगद रहे हैं। नरकगति से बचानेवाला चारित्र और तप है। बारबार सोचो कि तप और चारित्र से अगर नरककी घोर यातना से बचा जा सकता है तो तप और चारित्र के कष्ट सहने में क्या परेशानी ? नरक के अति घोर दुःख से बचने उसके कुछ अंशजैसा संयम और तप के कष्ट क्यों नहीं सहन करना ? १५ कर्मभूमिसेजीव मोक्षमें जाता है। युगलिक मनुष्य नरक में भी नहीं जाते और मोक्ष में भी नही आज का मानव पापजैसा टी.वी. छोड़ने को तैयार नहीं है। नरक दो-चार नहीं है, सात है फिर भी उसे न कोई डर है न घबराहट ! कैसी आश्चर्य की बात है ? हृदय कितना मजबुत है आदमी का ! चार गति में अति त्रासदायक शारीरिक और मानसिक दुःखो की यातनाएँ नरक में अनुभव करनी पड़ती है। अठारह पाप स्थानकों से अपने आत्मा को बचाना चाहिए | जिज्ञासा का पालन किजीए जिससे परमाधामी (पाप) अपनी काया का स्पर्श भी न कर सके । काया से तप और त्याग का आचरण कर सदगति बंध करना ही उचित है। ___ हमारे दादागुरु श्री कनकसूरिजी अमदावाद के श्रेष्टिओंको पुछते ? आपकी मीले (फेक्टरी) कितनी ? जितनी मीले उतनी नरक है। राजा श्रेणिक नरक से बचने का भगवान से उपाय पुछता है। क्या अपने को श्रेणिक महाराजा, जितना भय नरक का है ? चाणक्य के पिता ने उसके जन्म होते ही दांत घीसवा दिये क्योंकि उन्हें ज्योतिष ने बताया कि दांत बहार है इसलिये वह राजा बनेगा। धर्मयुक्त पिता को चाणक्य को राजा नहीं बनाना था क्योंकि राजा धार्मिक क्रियाएं आदि नहीं कर सकता जो दुर्गति का कारण बन जाती है। इसलिये उसके दांत घीसवा दिये ताकि वह राजा न बन सके। क्षीरकदंबक पाठक को जब परिक्षा द्वारा मालुम हुआ कि उसका पुत्र नरकमें जाने वाला है तब यह पुत्र के आत्मकल्याण के लिये घरबार छोडकर निकल पडा । धन्यवाद है ऐसे पिता को जिसे अपने बेटे की दुर्गति की सतत चिंता थी। सह सह विषीद मा, भो ? यहाँ तप-त्याग को कष्ट और दुःख नहिंवत है इसलिये सहन कर ले (अन्यथा) भविष्यमें अनंतगुना दुःख और कष्ट नरकमें भुगतने को तैयार रहना पडेगा। हे आत्मन!थोडा सोच ले। किसे कितनी कब नरकगति प्राप्त होगी उसकी गति-स्थिति आवासवर्ण-आयुष्य आदि का वर्णन शास्त्रो में उपलब्ध है। हर एक जीव को अलग प्रकार की वेदनाएं होती है। सर्व पापों का अंतीम फल तीव्र परिणामी होता है। पाप का विपाक नरक में रो रो कर सहन करना पड़ता है। यह द्रश्य देखकर सर्व पाप छोड दो, धर्म के आदेश से ज्ञान, ध्यान, तप, जप आदि प्रभु की आज्ञा शिरोधार्य करेंगे तो संसार भ्रमण का अंत हो जायेगा । मांसभक्षण का फल देखकर कौन बुद्धिमान उसे खायेगा जिससे नरक में वैतरणी नदीमें अपने को सिकवाना पडे । नरक में अति दारुण्य महावेदना झेलकर वापस प्रसाद में रहेने से ऐसी वेदनाएँ और पीड़ा कई बार सह चुका है, अब आत्मा को सावध कर जिससे ऐसी गलती दुबारा न हो कि फिर नरक में जाना पड़ जाये। सात नरको में शस्त्रों की मार से उठाती वेदना परमाधामी देवों द्वारा पहुंचाई जाती वेदना पंचेन्द्रिय की हत्या, गर्भपात, मांसाहार आदि के कारण होती है। दुःखो की पारावार असह्य कष्ट यातनाएँ अंतिम कक्षाके दुःखो नरक में भुगतना पडता है, अधिकतर पापो का फल भुगतने के लिए लंबा दीर्घ आयुष्य चाहिए | इसलिए अधिक दुःखो का स्थान नरक में जाना पडता है। तप जप की असीम शक्ती है कि जीवों को नरक में जाने से रोक सके। नवकारशी से १०० वर्ष पोरिसीसे १000 वर्ष। हे प्रभु ! मुझे नरक नहीं जाना है !!! (14)
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy