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________________ नियम द्वारा देवविमान प्राप्त कर सकते है । सम्यगदर्शन पाकर तो देवका ही आयुष्य बांध सकते है। नरकगति के द्वार बंद होते है। प्रमाद से नरकका और अप्रमादसे स्वर्गका बंध होता है । प.पूज्य भवोदधि तारक गुरुदेवश्री (आ.भ. कलापूर्णसूरीश्वरजी म.सा.) का उज्जैन के चातुर्मास में जीवाभिगम सूत्र पर चलती थी वाचना उसमें नरक वर्णनका अंत न आता नरओसु जाई अइकखडाई, दुखाई परम तिकखाई को वण्णे ताई जीवे तो वास कोडी ५ ( उपदेश माला) नरक में जो शारीरिक अति कठोर और मानसिक अतितीक्ष्ण दुःखो अग्निदाहशालमलीवन-असिपत्रवन - वैतरणी नदी और सेंकडो शस्त्रोकी जो पीडाओ होती है। उसे करोड़ वर्ष आयुष्यवाला भी आजीवन वर्णन करे फिर भी पूर्ण वर्णन कौन कर सके क्योंकि वह दुःखो की कोई सीमा ही नहीं होती । पापो के फल का वर्णन करोडो वर्षो तक करे तो नहीं सकता फिर भी यथाशक्ति वर्णन करने का प्रयास मैने किया है। मद्रास में वर्ष की आयु में स्कूल में पढ़ता था तभी छोटी पुस्तक में नरकके चित्रो को देखकर १३ रात्री भोजन का त्याग किया। दीक्षा बाद गुरूदेव के पास जीवाभिगममें नरक का वर्णन पढ़कर भवनिर्वेद हुआ और वैराग्यकी वृद्धि के साथ सजाग बनने का मन हुआ | नरकका वर्णन आबाल गोपाल सबको उपयोगी हो और उसके फलरूप में पापोंसे पीछे हटे। शायद पाप न छोड़ सके तो पश्चाताप हो । और जल्दीसे जल्दी पाप छोडनेके लिए कटीबद्ध हो । यही आशय से नरक के वर्णन का पुस्तक लिखने की भावना हुई, मेरी पुस्तक में नरके वर्णन के साथ दिए हुए चित्रो के लिए पू.आ. जिनेन्द्र सू. म. सा. का सचित्र नारकी पुस्तक का भी आधार लिया गया है। तथा हिंसादि पापोके विपाक का वर्णन प.पू.पं. अरुणविजयजी म.सा. में से लिया गया है । तत्वार्थ सूत्र - लोकप्रकाशभवभावना आदि ग्रंथोमेंसे लिया हुआ है। पूर्व पू. आ. श्री जिनेन्द्र सू. म. सा. पू. आ. श्री हेमचंद्रसूरि म.सा., पू. आ. रत्नाकर सू. म. सा. तथा पू. आ. श्री राजेन्द्र सू. म. सा. ने भी नरके लिऐ पुस्तक लिखी हुई है । वर्तमान में अतिशय उपयोगी होने से मैने भी यह पुस्तक लिखी । उसमें भी नवसारी के गमनभाई ने सं. २०५८ के चातुर्मास मे व्याख्यान में सामान्य नरक की बात भी कहा आप नरक के लियए सुंदर पुस्तक तैयार कीजिए । चिंतामणी संघ के ज्ञान खाते मेसे अच्छी रकमकी ओफर से यह पुस्तक का लेखन तैयार किया । और मुंबई के सुश्रावकोकी श्रुतभावना से तैयार हुई थी । प्रथम आवृत्ति ४१०० नकल, दुसरी आवृत्ति ४००० कुल गुजराती ८००० अधिक नकल प्रगट हो चुकी, इंग्लीश में २५०० नकल, हिन्दी नकल ३०००, तीनों भाषा: प्रगट करने की भावना सफल हुई सिर्फ एक उदेश्य पाप से पीछे हटकर दुर्गति से बचे । - पू. गणिवर्य श्री विमलप्रभ वि. म. सा.
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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