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________________ नरक के आयुष्य को ही अशुभ माना के बाद पाप, दुःख खत्म नहीं होते वह दुसरी गतिओंमें गया है। जहाँ सतत मौतकी इच्छा होती है, भुगतनी पड़ती है । वह प्रायश्चित आलोचना द्वारा इनके अलावा पशु आदि तीन गतिमें मौत पापकी शुद्धि हो सके उनके लिए तीन साल पहले भव के लिए इच्छा नहीं है परंतु जीवन ज्यादा आलोचना ३२० पन्ने की पुस्तक तैयार की गई है। करने का प्रयास है, कुत्ते, बैल रोगी होते है । विस्तृत वर्णन उसमेंसे देख लेना - सुख है तो दुःख फिर भी मरने के लिए तैयार नहीं होते। मोत भी है, प्रकाश है तो अंधेरा भी है, उसी तरह स्वर्ग है तो तो तभी प्यारा लगता है। जब नरक भी है। वैक्रिय शरीर हो उधर सुख और दुःख भी जीवन में असहन पीडा का अनेक ज्यादा हो फिर भी वह सुख दुःख से दूर रहना दुःख हो तब जीवन त्रास के ही अच्छा है। समान लगता है । ऐसे कष्टो, नरकमें परमाधामी ने बनाया हुआ तेजस्काय दुःखो, परेशानीओसे जो पदार्थ उष्णर्पश होते है परंतु साक्षात अग्नि असंभव छुटकारा पाना हो तो पाप मार्ग होती है। नरक जिसमे दुःखो की सीमा नहीं, विस्तृत से पीछे हटना ही पडेगा । नरक को तजने के। वर्णन सुनते ही कंपारी भय पैदा होता है - कंपन होती लिए धर्म और पुण्य की जरूरत होती है। है, खाना भी अच्छा नहीं लगता, नींद भी नहीं आती नेमिनाथ भगवान को कृष्ण कहते है मै नरक वहाँ सूर्य, चंद्र नहीं होते, अंधेरा अमास की रात से भी के मार्ग में नहीं जाऊँगा नरकमें तो मुझे जाना ही __ ज्यादा होता है। नहीं है । तब भगवान कहते है १८ हजार साधुओंको नरक के वर्णन के साथ विधि से वंदन करनेसे चार(४) नरक टल गई अब ३ झूठ, चोरी आदि पापोंके फलका नरक के दुख बाकी बचे है। वासुदेव के भवमें हिंसा वर्णन उदाहरण के साथ लडाईयाँ, आरंभ - परिग्रह के कारण से पाप किए वसुराजा असत्य बोलने पर है। उनका फल तो तुमको भुगतना पडेगा। भगवान नरकमें गए, नागदत्त के कहते है में भी तुमको बचा नहीं पाऊँगा। पिताजी अनीति माया करके तप और संयम के कष्ट तो मामुली है, नरक की । बकरा बनके मरकर नरकमें गए, सुभूमचक्री लोभ वेदना के आगे उससे अच्छा तो नरकमें जाना ही न से मरकर सातवीं नरक में गए एक एक पापोसे पडे ऐसी साधना कर लेनी चाहिए और पापोका त्याग मरकर नरकमें जाए तो १८ पापों को सेवन करनेवाले कर दो बाद में परमाधमी की क्या ताकात की हमको की परलोकमें क्या दशा ? शशीप्रभ राजा के जैसे परेशान कर सके ? पीछे से भविष्य में पछताना न पडे । जहाँ तक आयुष्य मृत्युके बाद आत्माकी क्या स्थिती होती है वह बाकी है और चित्त का थोड़ासा भी उत्साह है। तब शास्त्रोसे मालूम पड़ती है कि मर जाने के बाद नरकमें। तक आत्मा हित करनेवाली साधना कर ले । बादमें जाने के बाद वापस आ नहीं सकते वहाँ कालापानी । शोक न करना पड़े । नास्तिक प्रदेशी राजा नरकमें की सजा लंबे अरसे तक भुगतनी ही पड़ती है। मरने जानेवाले योग्य कर्म बांध लिए थे। फिर भी तप-व्रत
SR No.009502
Book TitleMuze Narak Nahi Jana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprabhvijay
PublisherVimalprabhvijayji
Publication Year
Total Pages81
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size2 MB
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