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________________ व्रतोद्यापन । [११३ विकट कथानहि भापित यतिबर। शीतल वचन मधुरधन सुन्दर ।। कालत्रय धृतयोग सुकन्दर । सर्व जीव समता जय मंदर ॥ ६ ॥ पत्ता। ए गुणधरि आर्जव, मुनिवर आर्जव, आर्जव अंग सुजिनवर वचन । मरि अभय यतींदा जिन मुनि बन्दा, सुमति सागर जिनगुण कथन ॥७॥ ॐ हीं आर्जवांगाय महाध निर्वपामीति स्वाहा । अथ चतुर्थ सत्यांग पूजा। स्थापयामि सदा चित्ते सत्यधर्मोगकं मुदा । धर्मसिद्धिकरं लोके सर्वकल्याणकारकम् ।। ॐ ही उत्तमसत्यांग अत्र अवतर अवतर संवोपट (आहाननं) अत्र तिष्ठ तिष्ट ठः ठः (स्थापन ) अत्र मम सन्निहितो भव भव वपट ( सन्निधिकरणं )। सत्यशीलगुणाधारं स्पष्टसंख्याविवेदकं । चर्चामि बरपानीय श्रीमुनि मदहिंसकं ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं सिद्धगुणोद्धारकसत्यांगाय जलादिकं ( अष्टद्रव्यस्य अर्ध) जिनेन्द्रवचनाधार वेदवेदांगपारगं ।. .. प्रसत्यांगविधातार पूजयामि महामुनि ॥ २॥ . .
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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