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________________ ११२] श्रीदशलक्षण धर्म । जयमाला। घत्ता । आर्जव सुखमन्दिर, त्रिभुवनसुखसुन्दर, मुनिवर बंधव सुगुण सही। सममनवरचेता, परगुणनेता, विधनं दुर्गति गमन सही ॥१॥ कुटिल विचार, करे न मुनिवर । शुद्धाचरण विचरण, सुयतिवर ।। सत्य असत्य उभय अनुभव मन । तथा मुनीन्द्र सुकथन वचनगण ॥२॥ तनु विचरण त्रयभेद सुसंख्या। मनवचकाय गुप्ति परिरक्षा ।। कथित धर्मदयापरशासन । संकलजीव हितकरण सुभाषण ॥ ३ ॥ ऋजुपरिणाम विविध जणमण्डण । सम मन भाव कुमत मत खण्डन । परम विचार स्वमन परिरक्षण । । . भेद भाव सृति विसंत विचक्षण ॥ ४ ॥ वीतराग गुण मनगत सुन्दर। .: बोध विचार परमपद मन्दिर । । शुद्धाचार सु आर्जव गुणधर। . . . . . .. पर दुख सहन सुमन सुघनवरः।। ५ ॥
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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