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________________ गाथा-७८ उत्तर : कौन धारता है? यह तो निमित्तरूप से उपदेश हो, तब होता है।आहा...हा...! 'कर विचार तो पाम' - आता है या नहीं? श्रीमद् में आता है न? भाई! कर विचार, एक ही शब्द उन्होंने रखा है। शुद्ध-बुद्ध चैतन्यघन स्वयं ज्योति सुखधाम। बीजू कहिये केटलू कर विचार तो पाम॥ कर तो तू पा। हम कहते हैं तो पा – ऐसा है इसमें? मुमुक्षु : इतना तो कहा न कि कर विचार तो पाम? उत्तर : परन्तु कहा किसने? सुना किसने? समझा कौन? हो गया? समझा यह और समझाया इसने? यह इष्टोपदेश में नहीं आया? यह आ गया है ? गुरु किसे कहते हैं कि जो स्वयं चक्षु खोलता है और जो अपने को समझाता है, वह स्वयं; स्वयं अपना गुरु है।आहा...हा... ! समझ में आया? इष्टोपदेश में आया है या नहीं? कि गुरु किसे कहना? जो आत्मा अपने हित को चाहता है, हित को बताता है, और हित के फल के लिये अपने में प्रार्थना करता है, उसे गुरु कहते हैं। सुना है या नहीं? यह आ गया है। हित को चाहे, हित को समझाये-समझे और हित में वर्तन करे। लो, ठीक है ? यह गुरु का लक्षण दिया है। 'इष्टोपदेश' 'पूज्यपादस्वामी'। 'कुन्दकुन्दाचार्य' के शिष्यों में 'उमास्वामी' ने 'तत्त्वार्थसूत्र' बनाया है, उसकी जिन्होंने टीका बनायी – 'सर्वार्थसिद्धि टीका', मोक्षशास्त्र की। वे पूज्यपादस्वामी कहते हैं । व्यवहार शास्त्र की टीका बनायी। वे इष्टोपदेश में कहते हैं - अपने को उपदेश दे, मोक्ष की इच्छा करे और मोक्ष के भाव को समझावे तथा उसमें वर्तन करे, वह गुरु है। मुमुक्षु : यह तो निश्चय गुरु कहे? उत्तर : तब उस व्यवहार को व्यवहार कहा जाता है। यह वस्तु हो तो दूसरे को व्यवहार कहते हैं। कहा है न ! दूसरा कहा परन्तु कब? यह होवे तब न? निश्चय होवे तब ऐसा कहा जाता है कि इस गुरु से हमें प्राप्त हुआ – ऐसा बोला जाता है। 'गोम्मटसार' में मुनि भी ऐसा कहते हैं – हमारे गुरु से हम भवसागर तिर गये। वे स्वयं तिरे उसका उत्साह बताते हैं, समझ में आया? होंश को क्या कहते हैं ? उत्साह, उत्साह । 'गोम्मटसार'
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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