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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) ६७ पहले गुण-पर्याय को जानकर निर्णय और दृष्टि की हो और जिसने दृष्टि नहीं की उसे भी ऐसे विचार पहले आते हैं और दृष्टि करके अनुभव किया हो, उसे भी स्थिरता नहीं हो, तब ऐसे विचार आते हैं, उसे व्यवहार कहते हैं । यह आत्मा ध्रुवरूप से शाश्वत् है, नयी अवस्था से उत्पन्न होता है. परानी अवस्था व्यय-अभाव होता है - ऐसा उसका उत्पादव्यय-ध्रुवस्वरूप, उस एक स्वरूप में तीन भेद से विचारने का नाम व्यवहार है। समझ में आया? यह व्यवहार आता है, बीच में आये बिना रहता नहीं परन्तु है, उसका उत्साह करने योग्य नहीं है, उसका अनुसरण करने योग्य नहीं है। आता अवश्य है, आहा...हा...! अद्भुत बात, भाई! कहा है न वहाँ ? व्यवहार-दर्शन, ज्ञान-चारित्र को धारक वह आत्मा है, परन्तु वह व्यवहार अनुसरण करने योग्य नहीं है, हाँ! कहनेवाले और सुननेवाले दोनों को, बस ऐसा कहते हैं। 'समयसार' आठवीं गाथा में है न! 'जह ण वि सक्कमणज्जो अणजभासं विणा दु गाहेदूं।' आहाहा...! यह भगवान आत्मा को तीन रूप से कहना, गाना इसका नाम अनार्य भाषा है। उसे इस प्रकार समझाये बिना दूसरा कोई उपाय नहीं है। उसे एकरूप प्रभु का ज्ञान नहीं है, इसलिए भगवान आत्मा श्रद्धा-ज्ञान-चारित्र को पहुँचे, प्राप्त हो, वह आत्मा - ऐसा कहे बिना वह समझता नहीं है, तथापि वह कहना उस कहनेवाले को उस समय भले ही विकल्प है परन्तु वह अनुसरण करने योग्य नहीं है। सुननेवाला भले ही इस प्रकार सुने - यह भगवान आत्मा उत्पाद-व्यय-ध्रुव अथवा दर्शन-ज्ञान-चारित्रवाला है -ऐसा भले ही विचारे परन्तु उसमें रहने योग्य, अनुसरण करने योग्य नहीं है। वहाँ से हटकर ज्ञायकभाव में एकाकार होने योग्य है । आहा...हा...! समझ में आया? उत्पाद-व्यय और ध्रुव । समय-समय पर्यायों के पलटने से उत्पत्ति - विनाश करते हुए भी अपने स्वभाव से अविनाशी है... भगवान आत्मा एक सेकेण्ड के असंख्य भाग में परिणमित होते हुए भी, उत्पत्ति और व्यय ऐसा पलटा खाने पर भी वस्तु का पलटा नहीं है - ऐसे अविनाशी को धरनेवाला वह तत्त्व है। पर्याय से पलटे और वस्तु से अपलटे - सदृश्य रहे - ऐसी वह वस्तु है। आहा...हा... ! इसमें क्या करना? यह आता
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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