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________________ ६८ गाथा - ७६ है, वह व्यवहार है । आहा... हा... ! भगवान की भक्ति और पूजा का व्यवहार तो बहुत स्थूल, बाहर रह गया। समझ में आया ? अथवा वह सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्ररूप है। ऐसा विचार करना, कहते हैं । उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य उसकी अस्ति के तीन प्रकार और या यह सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र इन गुणोंवाला ऐसा है, उसका विचार करना । भगवान आत्मा सम्यग्दर्शन का धारक उसका गुण त्रिकाल है। पर्याय सम्यग्दर्शनरूप परिणमति है । सम्यग्ज्ञान त्रिकाल है, पर्याय से सम्यक्रूप परिणमता है। चारित्ररूप त्रिकाल है, पर्यायरूप से ( चारित्र) परिणमता है । ऐसे इन गुण और पर्यायवाला आत्मा है - ऐसे तीन भेद से एक का विचार करना, इसका नाम भगवान व्यवहार कहते हैं कि जो व्यवहार हेय है । आहा....हा... ! बापू ! तेरे घर में गये बिना तेरा छुटकारा नहीं है । ऐसे भेद-विचारने को वह घर से बाहर निकलता है - ऐसा कहते हैं। समझ में आया ? चार प्रकार विचार करे तो यह सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्तप... इच्छा निरोध । चार आराधना के स्वरूप का विचार करे। भगवान आत्मा ऐसे वस्तु से ज्ञायकरूप होने पर भी जब विचार भेद में आता है, तब ऐसा विचारना कि यह सम्यग्दर्शनमय वस्तु, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र और परमानन्द की उग्रदशारूपी तप, परमानन्द की उग्रदशारूपी तप (- ऐसे) चार गुणवाला यह भगवान है परन्तु मैं यह हूँ - ऐसी हूँ के अन्दर बात है । आहा... हा... ! समझ में आया ? अथवा यह अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त सुख और अनन्त वीर्य इन चार अनन्त चतुष्टयस्वरूप है। भगवान आत्मा अपनी ऋद्धि में... अपनी सम्पत्ति में ... पोतानी (अपनी) यह हमारी काठियावाड़ी भाषा है। पोतानी का अर्थ अपनी, ऐसा सब हिन्दी समझ लेना । क्यों, राजमलजी ! पोतामां... पोतामां... अर्थात् क्या होगा ? यह काठियावाड़ी भाषा है (इसलिए) जरा कठिन लगेगी। पोतामां अर्थात् क्या ? पोतामां क्या होगा ? पोतामां अर्थात् अपने में, ऐसा । पोतामां अर्थात् अपने में, अपने में अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त आनन्द, अनन्त बल (- ऐसे) अनन्त चतुष्टय की धारक वस्तु स्वयं ही है। एक को चार रूप से धारक विचार करना, वह व्यवहार और भेद है । आहा... हा... ! यह व्यवहार
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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