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________________ गाथा-७५ भगवान आत्मा के पूर्ण स्वभाव में जिसने अपनी दृष्टि और ज्ञान की वर्तमान कला उसमें जोड़ी, उसे योगी कहते हैं; उस योगी का वह व्यापार उसे योग कहते हैं, उस योग को धर्म कहते हैं । यह किस प्रकार की बात ! शशीभाई! यह कहाँ की (बात) होगी? लॉजिक से-न्याय से बैठे ऐसी बात है परन्तु कभी पृष्ठ खोला नहीं न? कभी पृष्ठ देखा नहीं न? कि कहाँ है मेरा मार्ग? मेरा पिता उसमें क्या रख गया है ? समझ में आया? अनन्त काल में ऐसे के ऐसे आत्मा के भान बिना भटका है। साधु हुआ, त्यागी हुआ, सूख कर मर गया परन्तु अपनी जाति की परिपूर्णता की दृष्टि के स्वीकार बिना जन्म-मरण का अन्त किसी दिन नहीं आता। (भले ही) मर जाये नहीं। बाबा होकर, योगी होकर । स्त्री-पुत्र कहाँ अन्दर में आ गये थे, वे तो बेचारे बाहर खड़े हैं। वह मैंने छोड़ा, उसका इसे अभिमान है। भगवान आत्मा एक समय में, सेकेण्ड के छोटे से छोटे काल में प्रभ है. ऐसा दष्टि में स्वीकार न आवे तब तक परिपूर्ण की सत्यता का स्वीकार नहीं तब तक असत्य का स्वीकार है. वह मिथ्यादष्टि है। असत्य कहो या मिथ्या कहो. सत्य कहो या सम्यक कहो। समझ में आया? आहाहा...! | मोक्ष का उपाय यही है और कोई मन्त्र या कोई तन्त्र नहीं। कोई मन्त्र जपने से होता होगा? ओम... ओम... ओम... ओम... ओम... अब ओम... ओम... लाख बार कर, करोड़ बार कर, वह भी विकल्प है। ऐ... शशीभाई! वह तो राग है, वह कहाँ आत्मा का धर्म था? तन्त्र, मन्त्र होगा या नहीं? मांगलिया-बांधलिया बाँध दे और अमुक हो जाये; डोरा बाँध दे, जा तेरा मोक्ष हो जायेगा! ऐसा कुछ होगा या नहीं? धूल में भी कहीं नहीं है, सुन न ! फूलचन्दभाई! 'जो जिण सो हउँ सो जि हउँ एहउ भाउ णिभंतु मोक्खहँ कारण जोइया' पूर्णानन्द की दशारूपी मोक्ष... मोक्ष का यह अर्थ है। पूर्णानन्द की प्राप्ति उसका नाम मोक्ष। ऐसे मोक्ष के कारणरूप, हे योगी ! 'अण्णु ण तंतु ण मंतु' भगवान पूर्णानन्द प्रभु, उसकी अन्तरदृष्टि और ज्ञान में स्वीकार करके एकाकार होना, वही आत्मा को पूर्ण शुद्धतारूपी आनन्द और पूर्ण आनन्द की दशा की प्रगटतारूपी मोक्ष है। उसका कारण यह एक ही है दूसरा कोई विकल्प और दया, दान, भक्ति, पूजा-फूजा, जात्रा-फात्रा, वह कोई मोक्ष का कारण नहीं है। कहो, समझ में आता है ? है ?
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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