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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) मुमुक्षु : यह नहीं सूझता उसका कारण क्या? उत्तर : सूझता है, नहीं सूझता ऐसा कैसे? स्थिर नहीं हो सके तो वहाँ तक उसे शुभभाव होते हैं। दया, दान, भक्ति, पूजा का भाव होता है परन्तु वह भाव होता है वह अन्दर की स्थिरता का कारण नहीं है और अन्दर की शान्ति का कारण नहीं है। समझ में आया? ___ मोक्ष का उपाय यही है कि अपने आत्मा को निश्चयनय से जैसा है वैसा समझे।लो, जैसा भगवान त्रिकाली है, वैसा उसके ज्ञान में ले, श्रद्धा में ले, अन्दर स्थिरता करे, वही आत्मा को पूर्ण शुद्धिरूपी मोक्षदशा उसका यह एक ही उपाय है। जैसा है वैसा... जैसा पूर्ण है ऐसा। वस्तु ज्ञान से, आनन्द से, शान्ति से, स्वच्छता से, प्रभुता से, परमेश्वरता से, कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान - ये सभी शक्तियाँ अन्दर आत्मा में पूर्ण पड़ी है। शुद्धरूप से परिपूर्ण प्रभु में पड़ी है। समझ में आया? ऐसे स्वभाव को जैसा है वैसा समझे। ___ मूल स्वभाव से यह आत्मा स्वयं जिनेन्द्र परमात्मा है। कर्मरहित आत्मा को जिनेन्द्र कहते हैं। अपना आत्मा निश्चय से द्रव्यकर्म... जड़कर्म, पुण्य-पाप के भावकर्म और नोकर्म... शरीरवाणी से रहित है। व्यवहारनय से अथवा पर्यायदृष्टि से.... अशुद्ध दिखता है। शुद्ध होने की शक्ति रखता है। तथापि अवस्था-वर्तमान हालत से देखें तो विकार दिखता है। वस्तु से देखें तो परमात्मा होने की शक्ति कायम रखता है। कारण समयसार कहा। आत्मा और परमात्मा समान है। आत्मा और परमात्मा सब प्रकार से समान है। भगवान पूर्णानन्द की प्राप्ति हुई और यह आत्मा समान है, केवल सत्ता की अपेक्षा से भिन्नता है। उनकी सत्ता-होनापना भिन्न है, इसका सत्तापना भिन्न है। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव जो एक आत्मा के हैं, वे ही दूसरे आत्मा के हैं। भगवान आत्मा जैसी अपनी वस्तु, अपनी चौड़ाई, अपनी दशा और अपने भाव उस रूप स्वयं है; उसी प्रकार सभी आत्माएँ हैं। सर्व आत्माओं का चतुष्टय समान है, सदृश्य है परन्तु एक नहीं - एक समान है। सब एक नहीं, एक समान है। आहा...हा...! (गेहूँ के) दाने का दृष्टान्त दिया था न?
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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