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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) है। नया होता है ? (तो) कहाँ रहा? कहाँ रहा? होवे वह जाता नहीं और नहीं हो वह होता नहीं। होवे, वह जाता है ? होवे उसका रूपान्तर होता है। रूपान्तर होता है; रहकर रूपान्तर होता है परन्तु जाकर अभाव होता है, ऐसा कभी नहीं हो सकता और न हो वह नयी चीज होती है (ऐसा नहीं होता) । गधे के सींग जगत् में नहीं हैं। कभी हुए ऐसा होगा नहीं। भगवान आत्मा अनादि का है। समझ में आया? इसमें आनन्दादि गुण की शक्ति अनादि की पड़ी है। प्रतीति में नहीं है, भरोसा नहीं आता। अरे ! मैं ऐसा? कहते हैं कि निर्धान्त होकर धारणा कर। भ्रान्ति छोड़ दे। आहाहा! अरे... ! मैं परिपूर्ण प्रभु हूँ न ! मेरे स्वभाव में तो परिपूर्णता (भरी है)। जिसे वस्तु कहते हैं और वस्तु का बसा हुआ अन्दर स्वभाव यदि कहें, वस्तु है न? पदार्थ है न? उसमें बसी हुई शक्तियाँ हैं । वस्तु अर्थात् उसमें बसी हुई शक्तियाँ, तो भगवान आत्मा वस्तु में बसी हुई रही हुई शक्तियाँ अर्थात् ज्ञान आनन्द गुणों के शक्ति के स्वभाव में अपरिमितता होती है, उसमें मितता-मर्यादा कैसे होगी? ऐसा जिसका अपरिमित ज्ञान आनन्दादि पूर्ण स्वभाव है, वही मैं हूँ, मैं भगवान हूँ। जिन वह जिनवर और जिनवर वह जिन! जिनवर को सम्प्रदाय का शब्द नहीं है, गुणवाचक है। राग और विकार का अभाव होकर उसके स्थान में अन्तर में जो वीतरागता, निर्दोषता पड़ी है, उसे प्रगट करके अरागी दशा की परिपूर्णता होना उसे आत्मा की वीतरागदशा कहते हैं। वह आत्मा का गुणवाचक नाम है, सम्प्रदायवाचक नहीं। समझ में आया? हे योगी! सम्बोधन किया है, हाँ! तू कुछ करना तो चाहता है या नहीं? कहते हैं। ऐसा जोड़ना (होता) है न? राग-द्वेष, पुण्य-विकल्प यह... यह... यह... यह... उसमें तो तेरा जुड़ान है, वह भी एक अज्ञान का योग है। पर के प्रति योग-सम्बन्ध किया है। ऐसा कर न अब! सुखी होना हो तो ऐसा जुड़ान कर न! भगवान पूर्णानन्द का नाथ प्रभु विराजता है, उसमें जुड़ान (कर)। योग... योग अर्थात् यूज - जुड़ना। जुड़ना श्रद्धा-ज्ञान से स्वीकार लाना, वह आत्मा के स्वभाव में जुड़ान को योग कहते हैं। उस योग को योगी कहते हैं। इस योग का सार-धर्म कहा जाता है। अन्य 'योगी' ऐसे-वैसे बैठ जायें ऐसे योगी नहीं। समझ में आया?
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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