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________________ ५४ गाथा - ७५ थे, दो-चार बार आये थे। एक बार दाड़ के लिये आये थे, एक बार 'जिंथरी' में कुछ था तब आये थे। लो, स्वयं दूसरे का आपरेशन करने गये थे । (वहाँ कहने लगे) 'मुझे कुछ होता है' वहाँ समाप्त हो गये । वह तो देह की स्थिति कौन रखे ? जो अवधि उस संयोग की है, उतनी वहाँ रहने की, इन्द्र-नरेन्द्र कोई फेरफार करने में समर्थ नहीं है। भगवान आत्मा पूर्णानन्द का नाथ, जिसका संग ही किसी को नहीं ऐसे असंग तत्त्व की दृष्टि कर, उसमें सुखी होने की राह है, ऐसा कहते हैं। समझ में आया ? यह तू कर सकता है। समझ में आया ? - हे योगी! क्या कहते हैं ? ऐसी ही शंकारहित भावना करो 'एहुउ णिभंतु भाउ' यह तो अकेले सिद्धान्त पढ़े हैं न ! बड़े सिद्धान्त हैं। जैसे 'चार पैसे में सेर तो मण का ढाई', - ऐसा सूत्र है । फिर सूत्र का खुलासा चाहे जितना करो, 'साढ़े सात आने- साढ़े आठ आने' इसी तरह यह तो अकेले सिद्धान्त, तत्त्व है। 'जो जिण सो हउँ सो जिहउँ एहउ भाउ णिभंतु' । भ्रान्ति छोड़कर निर्भ्रान्तरूप से ऐसी भावना कर । आहाहा ! यह उस भावना में कितना जोर है ! उसकी पुरुषार्थ की उग्रता कितनी है ! कोई कहे कि उसमें क्या ? परन्तु उसमें पुरुषार्थ की उग्रता है । अल्पज्ञ और राग-द्वेष होने पर भी मैं पूर्णानन्द हूँ, अखण्ड अभेद हूँ - ऐसी दृष्टि में पुरुषार्थ में ऐसा स्वीकार ( आया) उस पुरुषार्थ की उग्रता कितनी ! उस श्रद्धा में जोर कितना और उसके ज्ञान में जोर कितना कि मैं ऐसा परिपूर्ण हूँ !! उस श्रद्धा, ज्ञान और शान्ति तीनों में जोर है। समझ में आया ? मुमुक्षु : जोर करने का उपाय क्या ? उत्तर : वह क्या कहलाता है ? उसमें अन्दर में जोर करना, वह जोर लाने का उपाय अंगुली डालना है वहाँ ? वह जोर, ऐसा हूँ, वह जोर कौन लावे ? मैं अल्पज्ञ हूँ, रागी हूँ, ऐसा हूँ ऐसी जो मान्यता, उस मान्यता में यह मैं परिपूर्ण हूँ इस मान्यता का जोर कौन लावे? कहो, समझ में आया ? आहाहा ! दुनिया में भी कहते हैं जननेवाली में जोर न हो तो सुयाणी (प्रसुती करानेवाला) क्या करे ? सुयाणी । वैसे ही इसमें परिपूर्ण को प्रतीत करने का जोर न तो कौन करा दे ? कहो, समझ में आया ? इसे अनन्त काल गया, चौरासी के अवतार में इसके छिलके उड़ गये, आदि रहित काल । आदि है ? अनादि का आत्मा -
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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