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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) अर्थात् एक ही होकर टूट जाये, अकेला भगवान आत्मा शुद्ध रहे, तब स्वाधीन होकर आत्मा की मुक्ति होती है। इसीलिए ज्ञानी को पुण्य-पाप दोनों ही प्रकार के बन्धनों को हेय समझना उचित है। पुण्य और पाप दोनों भाव को ज्ञानी हेय समझे । उसमें एक उपादेय और एक हेय - ऐसा नहीं है । २७ मन्दकषाय के भावों को शुभोपयोग... मन्दकषाय होती है, दया, दान, भक्ति, व्रत, पूजा, यात्रा, वाचन, श्रवण में शुभभाव होता है, वह मन्दकषाय है। हिंसा, झूठ आदि तीव्र कषाय के भावों को अशुभोपयोग कहते हैं । दोनों से बन्ध होता है, चार घातिकर्म अथवा बन्ध दोनों उपयोग से होता है। दोनों उपयोग से होता है । क्या कहते हैं ? जैसे हिंसा, झूठ, चोरी, क्रोध, मान (आदि) अशुभ उपयोग से घातिकर्म - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अन्तराय बँधते हैं। ऐसे ही शुभ उपयोग से भी ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय मोहनीय बँधते हैं। समझ में आया ? जैसे पापपरिणाम से ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अन्तराय बँधते हैं; वैसे ही पुण्यपरिणाम से भी चार घाति (कर्म) बँधते हैं । आहा...हा...! शुभभाव से ज्ञानावरणीय बँधता है, शुभभाव से दर्शनावरणीय बँधता है, शुभभाव से मोहनीय बँधता है। समझ में आया ? चारित्रमोहनीय बँधता है या नहीं ? और अन्तराय भी (बँधता है) जैसे अशुभभाव से घाति (कर्म) का बन्ध है, वैसे शुभभाव से भी घाति (कर्म) का बन्ध है ही; अघाति में थोड़ा अन्तर पड़ता है, वह तो भेष में अन्तर पड़ा। अशुभ से अघाति में पाप बँधता है और शुभ से अघाति में पुण्य बँधता है। वह अघाति, अर्थात् संयोग में अन्तर पड़ा। इसके स्वभाव में कोई अन्तर नहीं है। ओहो...हो... ! लोगों को बाहर की मिठास (महिमा इतनी है) । वस्तुतः तो जब तक अतीन्द्रिय सुख की मिठास नहीं लगे तब तक इन्द्रिय-विषय के सुख की मिठास उसे नहीं छोड़ती और उस इन्द्रियसुख की मिठास में शुभपरिणाम की मिठास रहती है। समझ में आया ? शुभ परिणाम की मिठास, उसका फल बन्ध, उसका फल संयोग और उसका फल इन्द्रिय के विषय । अतीन्द्रिय आनन्द की रुचि सम्यग्दर्शन में हो तो उसे इन्द्रिय के विषयों में सुख बुद्धि उड़ जाती है । इन्द्रिय-विषय के सुख का कारण ऐसे पुण्यभाव में से भी रुचि उड़ जाती है। समझ में आया ? आहा... हा... ! फिर थोड़ी लम्बी बात की है, बन्ध की बात । —
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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