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________________ १८ शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर जोड़ती है और पर का सम्पर्क ध्यान की सबसे बड़ी बाधा है। एक तो कोई व्यक्ति पर्वत की इतनी ऊँचाई पर जायेगा ही नहीं, जायेगा भी तो जब उसे बगल में बैठने की जगह ही न होगी, तब बगल में बैठेगा कैसे ? इसप्रकार पर्वत की चोटी पर उन्हें सहज ही एकान्त उपलब्ध हो जाता है। इसीप्रकार वे तेज धूप में भी किसी वृक्ष की छाया में न बैठकर ध्यान के लिए पूर्ण निरावरण धूप में ही बैठते हैं। तपती जेठ की दुपहरी में यदि किसी सघन वृक्ष की छाया में बैठेंगे तो न सही कोई मनुष्य, पर पशु-पक्षी ही अगल-बगल में आ बैठेंगे। उनके द्वारा भी आत्मध्यान में बाधा हो सकती है। इस बाधा से बचने के लिए ही वे धूप में बैठते हैं, धूप से कर्म जलाने के लिए नहीं। ___ हमारे तीर्थंकर, हमारे मुनिराज निर्जन वनों में ही क्यों रहते हैं; वनवासी ही क्यों होते हैं, नगरवासी क्यों नहीं ? क्योंकि यदि वे नगर में रहते तो हमारे तीर्थ नगरों में ही होते, वन में नहीं, पर्वतों पर नहीं; फिर हमें भी अपने तीर्थों पर सभी सुख-साधन सहज ही उपलब्ध रहते, फिर तो हमारी यात्रा भी पिकनिक का आनन्द देती, पिकनिक जैसी आनन्ददायक होती; आज जैसी थका देनेवाली नहीं। अरे भाई ! तीर्थयात्रा आत्मकल्याण की भावना से की जाती है या पिकनिक मनाने के लिए ? यदि पिकनिक ही मनाना है तो उसके लिए तो और भी अनेक स्थान हो सकते हैं, तीर्थस्थानों को ही क्यों अपवित्र करना चाहते हो ? आमोद-प्रमोद और भोग-विलास से तो तीर्थों की पवित्रता भंग होती है। तीर्थयात्रा वैराग्यभावना की वृद्धि के लिए की जाती है, आमोद-प्रमोद के लिए नहीं। तीर्थ को आमोद-प्रमोद का स्थान बनाना धर्म नहीं, धर्म पर आघात है। अब रही मुनिराजों के वन में रहने की
SR No.009475
Book TitleShashvat Tirthdham Sammedshikhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages33
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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