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________________ शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर बात, सो उक्त संदर्भ में लेखक की अन्य कृति पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का निम्नांकित अंश द्रष्टव्य है - ___ “वनवासी मुनिराज नगरवासी गृहस्थों की संगति से जितने अधिक बचे रहेंगे, उतनी ही अधिक आत्मसाधना कर सकेंगे। इसीकारण तो वे नगरवास का त्याग कर देते हैं; वन में रहते हैं; मनुष्यों की संगति की अपेक्षा वनवासी पशु-पक्षियों की संगति उन्हें कम खतरनाक लगती है; क्योंकि पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े भले ही थोड़ी-बहुत शारीरिक पीड़ा पहुँचावे, पर वे व्यर्थ की चर्चायें कर उपयोग को खराब नहीं करते । गृहस्थ मनुष्य तो व्यर्थ की लौकिक चर्चाओं से उनके उपयोग को भ्रष्ट करते हैं। जिस राग-द्वेष से बचने के लिए वे साधुहुए हैं, उन्हें ये गृहस्थ येनकेनप्रकारेण उन्हीं राग-द्वेषों में उलझा देते हैं। तीर्थों के उद्धार के नाम पर उनसे चन्दे की अपील करावेंगे, पंच-पंचायतों में उलझावेंगे, उनके सहारे अपनी राजनीति चलावेंगे, उन्हें भी किसी न किसी रूप में अपनी राजनीति में समायोजित कर लेंगे। ___ इन गृहस्थों से बचने के लिए ही वे वनवासी होते हैं, पर आहार एक ऐसी आवश्यकता है कि जिसके कारण उन्हें इन गृहस्थों के सम्पर्क में आना ही पड़ता है। अतः सावधानी के लिए उक्त नियम रखे गये हैं। एक तो यह कि जब वे आहार के विकल्प से नगर में आते हैं तो मौन लेकर आते हैं, दूसरे खड़े-खड़े ही आहार करते हैं; क्योंकि गृहस्थों के घर में बैठना उचित प्रतीत नहीं होता। गृहस्थों का सम्पर्क तो जितना कम हो, उतना अच्छा है। दूसरों से कटने का मौन सबसे सशक्त साधन है; वे उसे ही अपनाते हैं। दूसरे, उन्हें इतनी फुर्सत कहाँ है कि बैठकर शान्ति से खावें । उन्हें तो शुद्ध सात्विक आहार से अपने पेट का खड्डा भरना है, वह भी आधाअधूरा; शान्ति से बैठकरं धीरे-धीरे भरपेट खाने में समय बर्बाद करना
SR No.009475
Book TitleShashvat Tirthdham Sammedshikhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2009
Total Pages33
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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