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________________ 80 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव स्वाध्याय कर अपना कल्याण करो; क्योंकि इस पंचमकाल में न तो तुम्हें परमात्मा के साक्षात् दर्शन ही मिलने हैं, न दिव्यध्वनि सुनने का ही साक्षात् लाभ प्राप्त होना है और न तीर्थंकरों के असली पंचकल्याणकों को देखने का अवसर मिलना है। अतः कल्पनालोक में विचरण करना बन्द करके परिस्थिति की नाजुकता को पहिचानों, समय बर्बाद न करो; अन्यथा यह जीवन यों ही चला जायगा, कुछ हाथ नहीं आएगा। सोचो, जरा गंभीरता से सोचो; समय तेजी से जा रहा है। आज केवलज्ञानकल्याणक तो हो ही गया है, कल मोक्षकल्याणक हो जायेगा और सब कार्यक्रम समाप्त हो जावेगा। हम सभी का जीवन भी पल-पल कर समाप्त हो रहा है और हम सब प्रतिक्षण मौत की ओर बढ़ रहे हैं, मृत्यु के मुख में जा रहे हैं। कल भगवान तो यह नश्वर देह छोड़कर विदेह हो जावेंगे, उन्हें तो मुक्ति की प्राप्ति हो जावेगी, उनका तो मोक्ष हो जावेगा; परिपूर्ण कल्याण हो जावेगा, इसप्रकार मोक्षकल्याण हो जायेगा और हम सब चार गति और चौरासी लाख योनियों में भटकने के लिए फिर अपनी वही पुरानी राह पर चल निकलेंगे। ___ यदि हमें अपने इस परिभ्रमण को रोकना है, संसारचक्र को तोड़ना है तो स्वयं के उपयोग को स्वयं में जोड़ना होगा, सम्पूर्ण जगत से नाता तोड़ना होगा और स्वयं को जानकर-पहिचान कर स्वयं में ही समा जाना होगा - यही एक मार्ग है, शेष सब उन्मार्ग हैं - यही भगवान की दिव्यध्वनि का सार है। इसप्रकार यह संक्षेप में केवलज्ञान कल्याणक की चर्चा हुई। इसमें केवलज्ञान (सर्वज्ञता) का स्वरूप स्पष्ट करते हुए यह स्पष्ट किया गया कि सर्वज्ञता तो धर्म का मूल है, उसके समझे बिना तो धर्म का आरंभ ही संभव नहीं है; क्योंकि सर्वज्ञता को समझे बिना सच्चे देव का स्वरूप भी समझ में नहीं आयेगा। इसीप्रकार सर्वज्ञ की वाणी के आधार पर रचित
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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