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________________ 79 सातवाँ दिन आत्मा की ही है। यह तो परम सौभाग्य की बात है कि इस निकृष्टकाल में भी यह उत्कृष्ट बात सुनने को मिल रही है। इसकी उपेक्षा मत करो, अत्यन्त प्रीतिपूर्वक सुनो, तुम्हारा कल्याण अवश्य होगा । - आचार्य पद्मनंदी तो यहाँ तक लिखते हैं कि - "तत्प्रति प्रीतिचित्तेन येन वार्तापि हि श्रुता । निश्चितं स भवेद्भव्यो भाविनिर्वाणभाजनम् ॥' जिनने निज भगवान आत्मा की बात भी अत्यन्त प्रीतिपूर्वक सुनी हो, वे निश्चित ही भव्य हैं और वे शीघ्र ही निर्वाण की प्राप्ति करेंगे।" यह तो महान भाग्य की बात है कि हमें साक्षात् केवली परमात्मा से वीतरागी तत्त्वज्ञान की बात सुनने को मिले, निज भगवान आत्मा की बात सुनने को मिले; पर सभी को सदा यह सौभाग्य कहाँ प्राप्त होता है ? तो क्या सभी अपना कल्याण करने के लिए परमात्मा की साक्षात् वाणी सुनने की प्रतीक्षा करते रहेंगे ? नहीं, कदापि नहीं; परमात्मा की दिव्यध्वनि का सार जहाँ से भी प्राप्त हो, वहाँ से ही प्राप्त कर अपने कल्याण में प्रवृत्ति करना चाहिए। जिसप्रकार जिनेन्द्र भगवान के साक्षात् दर्शन प्राप्त नहीं होने पर हम इन पंचकल्याणकों में प्रतिष्ठित और जिनमंदिरों में विराजमान जिनेन्द्र प्रतिमाओं के दर्शन कर अपना कल्याण करते हैं; उसीप्रकार जिनेन्द्र परमात्मा की वाणी सुनने का साक्षात् अवसर प्राप्त न होने पर उनकी वाणी के अनुसार लिखी गई जिनवाणी का स्वाध्याय कर, उसके विशेषज्ञ वक्ताओं से उसका मर्म सुनकर समझकर आत्मकल्याण में प्रवृत्त होना चाहिए । यही मार्ग है । ये पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव भी यही सन्देश देते हैं कि तुम्हें यदि तीर्थंकर परमात्मा के असली पंचकल्याणक में शामिल होने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ है तो तुम इन पंचकल्याणकों में रुचिपूर्वक लाभ लेकर अपना कल्याण करो। इसीप्रकार जिनप्रतिमा के दर्शन कर एवं जिनवाणी का
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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