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________________ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव इसके उत्तर में आप उत्साहपूर्वक कह सकते हैं कि क्यों नहीं जावेंगे, अवश्य जावेंगे। ऐसा मौका कब-कब मिलता है? पर मैं कहता हूँ कि इतनी जल्दी उत्तर न दीजिए, जरा सोच लीजिए, अच्छी तरह सोच लीजिए, दिन में तीन-तीन बार, प्रत्येक बार छह-छह घड़ी और प्रतिदिन जाने की बात है । अच्छी तरह समझ लीजिए; प्रतिदिन ७ घंटे और १२ मिनट तक शुद्धात्मा संबंधी व्याख्यान सुनने की बात है। शुद्धात्मा की चर्चा सुनने में है इतनी रुचि आपकी; जो सब धंधा-पानी छोड़कर इस अरस- अरूपी आत्मा की चर्चा में रस लेंगे? बैठा जायगा लगतार इतना आपसे ? यहाँ तो एक घंटे में ही ऊबने लगते हैं, बार-बार घड़ी देखने लगते हैं । 78 इस पर आप कह सकते हैं कि यहाँ की बात जुदी है और वहाँ की बात जुदी होगी; क्योंकि यहाँ तो आप बोल रहे हैं और वहाँ तो साक्षात् परमात्मा की वाणी होगी; पर सोचने की बात यह है कि भले ही कोई बोले, पर बात तो वही आत्मा की की जा रही है, सर्वज्ञ भगवान की वाणी के अनुसार ही की जा रही है। भले ही हम बोल रहे हों, पर बात हमारी नहीं है, जिनवाणी की है, सर्वज्ञ परमात्मा की है, निज भगवान आत्मा की है। इतनी अरुचि लेकर भगवान आत्मा की बात नहीं सुनी जा सकती । अरुचिपूर्वक सुनने से कुछ भी हाथ नहीं लगता । भले ही साक्षात् परमात्मा से सुने, पर अरुचिपूर्वक सुनने से कुछ भी हाथ नहीं लगेगा। अतः जिनवाणी तो रुचिपूर्वक ही सुननी चाहिए। एक बात यह भी तो है कि इस पंचमकाल में साक्षात् परमात्मा तो तुम्हें सुनाने के लिए आने वाले हैं नहीं और तुम अन्य ज्ञानीजनों से सुन नहीं सकते; इसका तो सीधा - सच्चा यही अर्थ हुआ कि आपका यह भव यों ही जाना है। अरे भाई, परमात्मा की प्रतीक्षा में समय व्यर्थ मत करों, इस मनुष्य भव का एक - एक क्षण कीमती है, इसमें तो जिस भी ज्ञानी धर्मात्मा से भगवान आत्मा की बात सुनने को मिले, उसे उसी प्रेमभाव से सुनो, जिस प्रेमभाव से परमात्मा की बात सुनना चाहते हो; क्योंकि बात तो उसी परमात्मा की ही है, तुम्हारे
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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