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________________ सातवाँ दिन केवलज्ञानकल्याणक आज केवलज्ञानकल्याणक का दिन है। पंचकल्याणक महोत्सव का सातवाँ दिन और पंचकल्याणक का चौथा दिन। ___ आज मुनिराज ऋषभदेव को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। केवलज्ञान माने सर्वज्ञता, सम्पूर्ण ज्ञान, परिपूर्ण ज्ञान। सम्पूर्ण जगत में लोकालोक में जितने भी पदार्थ हैं, उन सभी को उनके सम्पूर्ण गुण और भूत, भविष्य एवं वर्तमान की समस्त पर्यायों सहित एक समय में बिना किसी की सहायता के, इन्द्रियों के बिना, सीधे आत्मा से प्रत्यक्ष जानना ही केवलज्ञान है। केवलज्ञान सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती सभी पदार्थों को हाथ पर रखे हुये आँवले के समान अत्यन्त स्पष्टरूप से जानता है। सूक्ष्म माने दृष्टि से दूर, अन्तरित माने काल से दूर और दूरवर्ती माने क्षेत्र से दूर। परमाणु आदिक सूक्ष्म हैं, रामादिक काल से दूर होने से अन्तरित हैं और सुमेरु पर्वत आदि क्षेत्र से दूर होने से दूरवर्ती कहे जाते हैं। ये सूक्ष्म, अन्तरित और दूरवर्ती सभी पदार्थ केवलज्ञानदर्पण में समानरूप से प्रतिभासित होते हैं। तात्पर्य यह है कि केवलीभगवान पदार्थों को देखने-जानने के लिए उनके पास नहीं जाते और पदार्थ भी उनके पास नहीं आते; तथापि सभी पदार्थ बिना यत्न के ही प्रतिसमय उनके ज्ञानदर्पण में झलकते रहते हैं। _ जिसप्रकार दर्पण भी पदार्थों के पास नहीं जाता और पदार्थ भी दर्पण के पास नहीं आते, फिर भी दर्पण में पदार्थ झलकते हैं; उसीप्रकार केवलज्ञान में लोकालोक के सभी पदार्थ झलकते हैं । दर्पण में तो यह आवश्यक है कि जो पदार्थ उसके सामने होंगे, वे ही झलकेंगे; पर केवलज्ञान में ऐसी भी कोई आवश्यकता नहीं है। कोई पदार्थ कहीं भी क्यों न हो, वह अपनी भूत-भविष्य
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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