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________________ सातवाँ दिन में होनेवाली समस्त पर्यायों सहित केवलज्ञान में झलकता है। तात्पर्य यह है कि केवलज्ञान में क्षेत्र और काल बाधक नहीं होते, किसी भी प्रकार की पराधीनता नहीं होती, लोकालोक का ज्ञान प्रतिसमय सहजभाव से होता रहता है और केवलज्ञानी अपने में मग्न रहते हुए भी लोकालोक के सभी पदार्थों को सहजभाव से जानते-देखते रहते हैं । पदार्थों के परिणमन से न वे प्रभावित होते हैं और न उनके जानने-देखने से पदार्थों का परिणमन ही प्रभावित होता है, सहज ही निर्लिप्त भाव से ज्ञाता ज्ञेय सम्बन्ध बना रहता है। 65 यहाँ एक प्रश्न संभव है कि यदि केवली भगवान भविष्य की पर्यायों को भी जानते हैं तो फिर तो सम्पूर्ण भविष्य भी निश्चित होगा; क्योंकि यदि भविष्य निश्चित न हो तो उसे जानेंगे कैसे और उसके जानने का अर्थ भी क्या है ? हाँ भाई, बात तो ऐसी ही है कि प्रत्येक पदार्थ का किस समय कैसा, क्या परिणमन होगा - यह सब सुनिश्चित ही है और केवली भगवान उसे अत्यन्त स्पष्टरूप से जानते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो फिर भगवान ऋषभदेव ने यह कैसे बता दिया था कि यह मारीचि एक कोड़ाकोड़ी सागर के बाद इसी भरतक्षेत्र में चौबीसवाँ तीर्थंकर होगा । एक कोड़ाकोड़ी सागर का काल बहुत लम्बा होता है। मारीचि और महावीर के भवों के बीच में असंख्य भव थे, वे सभी भगवान आदिनाथ के ज्ञान में झलक रहे थे, तभी तो उन्होंने यह सब बताया था । भगवान नेमिनाथ ने भी बारह वर्ष पहले यह बता दिया था कि यह द्वारका नगरी बारह वर्ष बाद जल जायेगी और लाख प्रयत्न करने पर भी उसे जलने से रोका नहीं जा सका, आखिर वह जली ही । इसी प्रकार की सुनिश्चित भविष्य संबंधी लाखों घोषणायें जिनवाणी में भरी पड़ी हैं, जो इस बात को सुनिश्चित करतीं हैं कि भविष्य एकदम सुनिश्चित है, अघटित कुछ भी घटित नहीं होता। अनन्त केवली भगवान सभी के उस सुनिश्चित भविष्य को जानते हैं।
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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