SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छठवाँ दिन मुनिराजों को तो शास्त्रों में चलते-फिरते सिद्ध जैसा ही कहा है। मैंने स्वयं देव-शास्त्र-गुरु पूजन की जयमाला में लिखा है - "चलते-फिरते सिद्धों से गुरु चरणों में शीश झुकाते हैं। हम चले आपके कदमों पर नित यही भावना भाते हैं ॥" आज दीक्षाकल्याणक के दिन हम सब मुनिदशा का स्वरूप समझें, उसके सन्दर्भ में विचार करें, चिन्तन करें, मन्थन करें; क्योंकि एक न एक दिन हम सबको भी मुनिराज बनना है न? अरे भाई मुनिराज न बनेंगे तो मोक्ष कैसे जावेंगे? मुनिधर्म धारण किए बिना तो आज तक किसी को मोक्ष हुआ नहीं, तो हमें व आपको कैसे होगा? ___ 'वो दिन कब पाऊँ,जब घर को छोड़ बन जाऊँ ।' - यह भावना भाते हुए दीक्षाकल्याणक की चर्चा समाप्त करता हूँ। कल केवलज्ञानकल्याणक की चर्चा होगी। कोई न कोई राजनीति होगी किसी व्यक्ति का हृदय कितना ही पवित्र और विशाल क्यों न हो; किन्तु जबतक उसका कोई स्वरूप सामने नहीं आता, तबतक जगत उसकी पवित्रता और विशालता से परिचित नहीं हो पाता है। विशेषकर वे व्यक्ति जो किसी कारणवश उससे द्वेष रखते हों, तबतक उसकी महानता को स्वीकार नहीं कर पाते, जबतक कि उसका प्रबल प्रमाण उनके सामने प्रस्तुत न हो जावे। विरोध के कारण दूर रहने से छोटी-छोटी बातों में प्रगट होनेवाली महानता तो उन तक पहुँच ही नहीं पाती है; जो कुछ पहुँचती भी है, वह तीव्र द्वेष में सहज स्वीकृत नहीं हो पाती है। यदि किन्हीं को कभी किसी कार्य को देखकर ऐसा लगता भी है तो पूर्वाग्रह के कारण समझ में नहीं आती। तथा यदि समझ में भी आवे तो - इसमें भी कोई न कोई राजनीति होगी - यह समझकर यों ही उड़ा दी जाती है। क्योंकि उनकी, बुद्धि तो उसके दोष-दर्शन में ही सतर्क रहती है। - सत्य की खोज, पृष्ठ २४०
SR No.009467
Book TitlePanchkalyanak Pratishtha Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy