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________________ पञ्चास्तिकाय परिशीलन सत्तामात्र वस्तु के बिना सहभूतलक्षणरूप गुण नहीं होते और गुणों के बिना द्रव्य नहीं होता। इसकारण द्रव्य व गुण पृथक् नहीं है ह्र ऐसा ही वस्तु का स्वरूप है। जैसे ह्न पुद्गल द्रव्य से स्पर्श, रस, गंध एवं वर्णादि गुण पृथक नहीं हैं, आम, नीम, नीबू आदि से उसका पीलापन, मीठापन, कड़वापन या खट्टापना आदि पृथक् नहीं होते, उसीप्रकार प्रत्येक द्रव्य के गुण द्रव्य से अपृथक् ही होते हैं, कभी भी पृथक् नहीं होते । ६० 'द्रव्य से गुण पृथक् हैं' ह्र ऐसा मानने पर भी इस विषय को इतना विस्तार से स्पष्टीकरण करने की आवश्यकता क्यों अनुभव की गई ? उत्तर ह्न अरे भाई ! बौद्ध मतानुयायी तो ज्ञेय से ही ज्ञान का होना मानते हैं। वे कहते हैं जैसा ज्ञेय जानने में आया वैसा ही ज्ञान होता है। ऐसा मानते हैं कि शास्त्र पढ़ने से या उपदेश सुनने से ज्ञान की अवस्था में वृद्धि हुई तो वे भी प्रच्छन्न बौद्ध ही है; क्योंकि वे आत्मा को और ज्ञान गुणको अभिन्न नहीं मानकर ज्ञेयों से ज्ञान का होना मानते हैं। आचार्य उन जीवों पर करुणा करके कहते हैं कि ह्र अरे भाई ! तुम्हारे गुण तुमसे अलग नहीं हैं। जहाँ से सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र की पर्यायें उत्पन्न होती हैं, वे श्रद्धा-ज्ञान- चारित्र आत्मा के गुण हैं । यदि तुझे निर्मल पर्यायें प्रगट करनी होवें तो अन्तर्मुख होने से वे प्रगट होंगी। वे पर्यायें देव-शास्त्र-गुरु में से नहीं आयेंगी। हाँ, जब आत्मा में वे निर्मल पर्यायें प्रगट होंगी, तब देव-शास्त्र-गुरु निमित्तरूप अवश्य होंगे।" इसप्रकार इस गाथा में द्रव्य और गुण का अभेद दर्शाया गया है। १. श्री सद्गुरु प्रवचन प्रसाद, नं. १०८, पृष्ठ ८८८, दिनांक १५-२-५२ (39) गाथा १४ पिछली गाथा में प्रदेशभेद न होने से द्रव्य व गुणों को अभेद दर्शाया है। अब इस गाथा में स्याद्वाद शैली से वस्तु के ७ भंग कहते हैं। मूल गाथा इसप्रकार है ह्न सिय अत्थि णत्थि उहयं अव्वत्तव्वं पुणो य तत्तिदयं । दव्वं खु सत्तभंगं आदेसवसेण संभवदि । । १४ ।। (हरिगीत) स्यात् अस्ति नास्ति - उभय अर अवक्तव्य वस्तु धर्म हैं। अस्ति-अवक्तव्यादि त्रय सापेक्ष सातों भंग हैं || १४ || वस्तुतः द्रव्य - कथन की अपेक्षा से स्यात् अस्तिरूप, स्यात् नास्तिरूप, स्यात् अस्ति नास्ति (उभय) रूप है। तीनों धर्म एकसाथ कथन में न आने से वही वस्तु अवक्तव्य है। इसप्रकार वस्तु के चार भंग हुए। अवक्तव्य के साथ अस्ति, नास्ति तथा अस्ति नास्ति लगाने से तीन भंग और हो जाते हैं। जो इसप्रकार हैं ह्र स्यात् अस्ति अवक्तव्य, स्यात् नास्ति अवक्तव्य तथा स्यात् अस्ति-नास्ति अवक्तव्य । इसप्रकार वस्तु का कथन सात भंगरूप होता है। टीकाकार आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं कि यहाँ द्रव्य के आदेश (कथन) के वश से वस्तु को उपर्युक्त रूप से सात भंगों में कहा गया है। यहाँ सप्तभंगी में सर्वथापने अर्थात् एकान्त का निषेधक एवं अनेकान्त का द्योतक 'स्यात्' शब्द कथंचित् अर्थात् किसी अपेक्षा के अर्थ में अव्यय रूप से प्रयुक्त हुआ है। जैसे कि ह्र द्रव्य 'स्यात् अस्ति' रूप से है, द्रव्य 'स्यात् नास्ति' रूप से है, द्रव्य 'स्यात् अस्ति और नास्ति' है । द्रव्य 'स्यात्' अवक्तव्य है, द्रव्य 'स्यात् अस्ति और अवक्तव्य' है, द्रव्य स्यात् नास्ति और अवक्तव्य है तथा द्रव्य 'स्यात् अस्ति नास्ति और अवक्तव्य रूप से है।
SR No.009466
Book TitlePanchastikay Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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